23 मई से 11 अक्टूबर तक रहेगा वक्रत्व काल
जयपुर। न्याय और कर्म के देवता शनि 23 मई को वक्री हो होकर 11 अक्टूबर तक स्वराशि मकर में रहेंगे। वक्र दृष्टि संबंध अलग-अलग समय पर अलग- अलग ग्रहों से बनेगा, जिसका अलग प्रभाव दर्श होगा। शनि का वक्रत्व काल तकरीबन 143 दिन तक का होगा। ज्योतिष के ग्रंथों में शनि के वक्री होने को शुभ नहीं माना गया है। शनि के वक्री होने पर प्रजा रोग व पीड़ा का शिकार व धन हानि कराते हैं। शनि का पद ग्रह मंडल में सेवक का पद है यह सेवा कार्य तथा ईमानदारी , कर्म निष्ठ , समर्पित तथा धार्मिक , आध्यात्मिक जातकों के लिए सहयोग प्रदान करते है । वक्री अवधि के दौरान शनि से संबंधित क्षेत्र एवं दिशाएं तथा राष्ट्रों में इसका प्रभाव अलग – अलग प्रकार से दिखाई देगा।
धनु, मकर व कुंभ राशि पर प्रभाव
ज्योतिषियों के अनुसार जब-जब न्याय के देवता शनि अपना स्थान बदलते हैं तब सभी राशियां प्रभावित होती है। जिन राशियों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या चल रही है उन पर अधिक प्रभाव पड़ता है। शनि के वक्री का सबसे ज्यादा प्रभाव धनु, मकर और कुंभ इन तीनों राशियों पर पड़ेगा। वहीं 2 अन्य राशि मिथुन और तुला भी प्रभावित होगी।
खड़ाष्टक संबंध से सकारात्मक परिवर्तन
शनि का वक्रत्वकाल में 23 मई से दस दिन के लिए शनि का मंगल से वक्र दृष्टि से खड़ाष्टक संबंध बनेगा । यह स्थिति वर्तमान में उपस्थित परिस्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती है। क्योंकि जब भी पाप ग्रहों के मध्य इस प्रकार का कोई संबंध होता है तो वह परिस्थितियों में परिवर्तन करने का सक्षम प्रभाव दर्शाता है ।
शनि ग्रह की अनुकूलता के लिए यह करें
जिन जातकों की जन्म कुंडली में शनि की साढ़ेसाती अथवा शनि की ढैया या शनि की महादशा अथवा अंतर्दशा चल रही हो , उनको शनि की प्रसन्नता के लिए शनि स्तोत्र का पाठ, महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ , शनि के वैदिक अथवा बीजोक्त जाप करने से अनुकूलता प्राप्त होगी । अन्न व वस्त्र दान व गौ सेवा से अनुकूलता होगी ।