इन 5 पवित्र नदियों के घाट पर लगता है महाकुंभ मेला, जानें इनका पौराणिक महत्व

महाकुंभ में लोग करोड़ों की संख्या में आ रहे हैं। ऐसे में लोगों को यह जानना चाहिए कि कुंभ मेला महज 5 नदियों के घाटों पर ही लगता है और उन नदियों का क्या महत्व है…

महाकुंभ का मेला इस बार प्रयागराज के संगम तट पर लग रहा है। करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने पहुंच रहे हैं। बता दें कि महाकुंभ मेला देश के कुल 4 जगहों (हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज) पर ही लगता है, इन जगहों पर 5 नदियां है, गंगा, यमुना, सरस्वती, क्षिप्रा, गोदावरी। इन नदियों की अपनी-अपनी पौराणिक कथा है। जिस कारण उनकी उत्पत्ति हुई। आइए जानते हैं इन नदियों के महत्व क्या हैं..

गंगा नदी का पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, राजा भागीरथ मां गंगा को कठोर तपस्या करके पृथ्वी पर लाए थे। कथा के मुताबिक, कपिल मुनि ने उनके 60 हजार पूर्वजों को अपने श्राप से भस्म कर दिया था और उनके पूर्वज अंशुमान ने विनम्रता पूर्वक उनसे अपने 60 हजार चाचाओं के उद्धार का रास्ता पूछा था तो कपिल मुनि ने कहा था कि इनका उद्धार गंगाजल से ही सकेगा। इसके बाद अंशुमान ने कई सालों तक तपस्या की, पर वे असफल रहे। फिर उनके पुत्र दिलीप ने कठोर तपस्या की लेकिन वे भी सफल न हो सके। इसके बाद उनके पुत्र भगीरथ की तपस्या से गंगा मां प्रसन्न हुई और भागीरथी बन कर धरती पर आईं और फिर राजा सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार हो सका।

यमुना नदी का पौराणिक महत्व
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, यमुना को यमराज की बहन माना गया है। कहा जाता है कि दोनों ही सूर्य के पुत्र हैं। कहते हैं सूर्य की एक पत्नी छाया थी, छाया (संज्ञा देवी) दिखने भी श्याम रंग की थी, इसी वजह से यमराज और यमुना भी श्याम रंग के पैदा हुए। इसके बाद संज्ञा देवी सूर्य की किरणों को न सह सकीं और उत्तरी ध्रुव प्रदेश में जाकर छाया नाम से जानी जाने लगीं। इसके बाद उसी छाया से ताप्ती नदीं और शनिदेव का जन्म हुआ। इसके बाद यमराज और यमुना से छाया का व्यवहार विमाता-सा हो गया, जिससे खिन्न होकर यमराज ने अपनी एक नगरी यमलोक बसाई, और यमुना जी गोलोक आ गईं। कृष्ण अवतार के समय यमुना गोलोक में ही थीं। यमुना का उद्गम यमुनोत्री से हुआ है। कहा जाता है कि यमुनोत्री जाए बिना उस क्षेत्र की तीर्थ यात्रा अधूरी है।

सरस्वती नदी का पौराणिक महत्व
सरस्वती को अदृश्य सरस्वती कहा जाता है क्योंकि उन्हें एक कथा के अनुसार, एक श्राप के कारण यह सूखती जा रही है। वैदिक काल में ऋषि मुनियों ने सरस्वती के किनारे कई पुराण, ग्रंथ लिखे। इसी कारण सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया। माना जाता है कि इनके विलुप्त होने के पीछे एक कहानी है। कहा जाता है कि जब व्यास जी गणेश जी से महाभारत लिखवा रहे थे तब गणेश जी को नदी के वेग के कारण ऋषि की बातें सुनने में परेशानी हो रही थी, जिसके बाद गणेश जी ने सरस्वती से अनुरोध की वे अपनी गति धीरे कर ले जिससे वे बात सुन सकें। पर देवी सरस्वती ने गणेश जी के अनुरोध को अनसुना कर दिया और अपने तीव्र वेग से बहती रहीं, जिसके बाद गणेश जी को गुस्सा आ गया और सरस्वती को श्राप दे दिया कि वे धरती के नीचे बहेंगी और यहां से धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएंगी।

क्षिप्रा नदी का पौराणिक महत्व
एक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के रक्त से क्षिप्रा नदी का जन्म हुआ था। क्षिप्रा नदी के किनारे ही ऋषि संदीपनी का आश्रम था। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी आश्रम में पढ़ाई करते थे। इसके अलावा, राजा भर्तृहरि और गुरु गोरखनाथ ने भी इस नदी के किनारे तपस्या की। क्षिप्रा नदी के किनारे बने घाटों का भी पौराणिक महत्व है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्धकर्म यहीं इसी नदी के किनारे किया था।

गोदावरी नदी का पौराणिक महत्व
माना जाता है कि गोदावरी नदी की उत्पत्ति त्र्यंबकेश्वर से हुई है। वही, त्र्यंबकेश्वर, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। गोदावरी को ब्रह्मांड के रचयिता भगवान ब्रह्मा की बेटी कहा जाता है। इसके अलावा, गोदावरी को दक्षिण गंगा के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि गोदावरी के पवित्र जल को गौतम ऋषि भगवान शिव के जटा से लाए थे। इसके अलावा, गोदावरी की 7 सहायक नदियों को 7 महान ऋषियों ने बनाया था। वहीं, पौराणिक मान्यता के मुताबिक, जब प्रभु राम चित्रकूट में गए थे, तब गोदावरी अपने पिता से छिपकर उनके दर्शन करने गई थीं। इसके अलावा, गोदावरी को दक्कान पठार की पवित्र नदी माना जाता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। जागरूक जनता एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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