- विश्वविद्यालय के 892 छात्र एवं छात्राओं ने कुलपति से किए बीजीय मसालों पर सवाल जवाब
- एक ही प्लेटफार्म के माध्यम से विश्वविद्यालय के 892 छात्र एवं छात्राएं लाभान्वित
- जीरे में ब्लाइट रोग से बचाव के लिए अल्प अवधि की किस्मों का प्रयोग करें किसान कुलपति डॉ बलराज सिंह
- धनिया की हरी पत्तियों की ऑफ-सीजन खेती के लिए लो प्रेशर ड्रिप सिस्टम के साथ प्लास्टिक कवर और शेड नेट कवर वॉक-इन-टनल अत्यंत उपयोगी– डॉ बलराज सिंह
- अजवाइन की खेती के लिए उठी हुई क्यारियों के साथ ड्रिप फर्टिगेशन और प्लास्टिक मल्चिंग एक प्रभावी तकनीक–डॉ बलराज सिंह
जोबनेर . श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर में बीज मसालों – आनुवंशिक सुधार, चुनौतियां, अनुसंधान विकास एवं मूल्य संवर्धन विषय पर ऑनलाइन व ऑफलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसमें विश्वविद्यालय के 14 संघटक कॉलेज के 892 छात्र एवं छात्राओं ने मसालों की फसलों की संभावनाओं पर कुलपति डॉ बलराज से सवाल जवाब किए,
मसाले फसलों का योगदान
राजस्थान व गुजरात के शुष्क व अर्द्ध शुष्क क्षेत्र में मसालों का 80 प्रतिशत योगदान है इसीलिए राजस्थान व गुजरात क्षेत्र मसालों के कटोरा के नाम से देश-विदेशों विख्यात है।
मसालेदार फसलों उपयोगिता
डॉ बलराज सिंह ने बताया कि भारत में बीज मसाले जैसे जीरा , सौंफ , मेथी , कलौंजी , धनिया आदि शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की महत्वपूर्ण फसलें हैं, मौसमी फसलें होने के कारण इन्हें बड़े पैमाने पर खाद्य फसलों के साथ बारी-बारी से और बारानी व सिंचित परिस्थितियों में अंतर व मिश्रित फसलों के रूप में भी उगाया जाता है। इनकी सुगंध और औषधीय गुणों के कारण इनकी मांग लगातार बढ़ रही है। बीजीय मसाले केवल स्वाद और सुगंध ही नहीं बढ़ाते हैं बल्कि पाचन में सहायक होते है, प्रतिरक्षक प्रणाली को मजबूत बनाते हैं रक्तचाप को नियंत्रित करते हैं मस्तिष्क स्वस्थ को बढ़ावा देते हैं। भारतीय बीज मसाले विश्व बाजार में भी काफी लोकप्रिय हैं। उन्होंने राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान संस्थान, अजमेर के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि इस संस्थान ने न केवल कई उच्च उपज देने वाली मसाला किस्मों को विकसित किया है बल्कि इन मसालों की खेती के लिए बेहतर उत्पादन प्रौद्योगिकियां भी विकसित की हैं।
कृषि विश्वविद्यालय से विकसित किस्म का देश में योगदान
डॉ बलराज सिंह ने बताया कि जोबनेर से विकसित उन्नत किस्मों का देश में किसानों के लिए बेहतरीन योगदान है
जीरा–जीरे की आरजेड 209, 223, 19, 341, 345 जैसी कई उच्च गुणवत्ता वाली किस्में विकसित की गई हैं।
सौंफ – आरएफ– 101,125, 205, 290, 143, 145, 178, 281, 157, 289 जैसे आदि किस्में विकसित की गई हैं। जिसमें आरएफ–290 किस्म प्रधानमंत्री द्वारा देश को समर्पित की गई है।
मैंथी –आरएमटी –1, 143, 303, 305, 351, 361, 354 आदि किस्में विकसित की गई है।
आरएमटी- 1 व 305 पहली निर्धारक किस्म विकसित करने वाला प्रथम कृषि विश्वविद्यालय है।
धनिया
सिंचित किस्में =आरसीआर –41 ,435, 446, 475, 480, 728
असिंचित किस्में =आरसीआर –20, 436, 684 आदि किस्में विकसित की गई है।
मसाला फसलों में रोग एवं कीटों निपटने के उपाय एवं चुनौतियां
डॉ बलराज सिंह ने बताया कि जीरे की सबसे बड़ी समस्या ब्लाइट रोग है जो निर्यात को प्रभावित करता है इस समस्या से निपटने के लिए छोटी अवधि वाली किस्मों की खेती और अंकुरण प्रक्रिया को अमीनो एसिड से उपचार करने जैसे उपाय किए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि किसान नागौरी मेथी की पत्तियों को पारंपरिक तरीके से धूप में सुखाते हैं। इससे पत्तियों पर फफूंद लग जाती है और उनकी गुणवत्ता खराब हो जाती है। उन्होंने सुझाव दिया कि किसानों को मेथी को छाया जाल में सुखाना चाहिए ताकि बेहतर गुणवत्ता प्राप्त हो सके। बीजीय मसालों की खेती में नई तकनीकों पर चर्चा करते हुए, बलराज सिंह ने बताया कि धनिया की हरी पत्तियों की ऑफ-सीजन खेती के लिए लो प्रेशर ड्रिप सिस्टम के साथ प्लास्टिक कवर और शेड नेट कवर वॉक-इन-टनल अत्यंत उपयोगी हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सौंफ, सोवा और अजवाइन की खेती के लिए उठी हुई क्यारियों के साथ ड्रिप फर्टिगेशन और प्लास्टिक मल्चिंग एक प्रभावी तकनीक है।
उन्होंने बताया कि मेथी की किस्म एएम 327-3 सब्जी के लिए उपयुक्त है। मिडज कीट सौंफ, धनिया, अजवाइन जैसी फसलों के लिए एक बड़ी समस्या है। इस समस्या से निपटने के लिए सोहा फसल को ट्रैप क्रॉप के रूप में उगाया जा सकता है।
डॉ बलराज सिंह ने बताया कि लेशन नेमाटोड बीज मसालों की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। डॉ. बलराज सिंह ने बताया कि सितंबर-अक्टूबर में मिट्टी को सोलराइज करके नेमाटोड को नियंत्रित किया जा सकता है। राजस्थान में बीज मसाले उत्पादकों के सामने जलवायु परिवर्तन, कीटों का प्रकोप और बाजार की अस्थिरता जैसी चुनौतियाँ हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए मूल्यवर्धन एक प्रभावी समाधान है।
जेनेटिक इंप्रूवमेंट से मसाले की फसलों में महत्व
डॉ बलराज सिंह ने जेनेटिक इम्प्रूवमेंट के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने बताया कि प्लांट ब्रीडिंग का उपयोग करके उच्च उपज देने वाली, रोग प्रतिरोधी और सुगंधित बीज मसाले की किस्मों को विकसित किया जा रहा है। मेथी और सौंफ में संकरण प्रजनन कार्यक्रम शुरू किया गया है। दोनों फसलों में क्रॉसिंग तकनीक का मानकीकरण वंशावली विधि द्वारा किया गया है। कुछ लाइनों को आशाजनक के रूप में पहचाना गया और परीक्षणों में शामिल किया गया। इसके अलावा बहु-चूर्ण और निर्धारित प्रकार के वंशानुक्रम का भी निर्धारण किया गया। धनिया और मैंथी में सूखा प्रतिरोधी किस्मों की पहचान की जा रही है और इन फसलों में कुछ लाइनों की पहचान की जा चुकी है। धनिया, सौंफ, मेथी और फसलों के लिए कृषि विधियों का पैकेज विकसित किया गया है।
मूल्य संवर्धन से किसानों की आय बढ़ाने के प्रभावी उपाय
मूल्यवर्धन से न केवल किसानों की आय में वृद्धि होती है बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनाया जा सकता है। डॉ बलराज सिंह ने राजस्थान में बीज मसालों के मूल्यवर्धन के कुछ सफल उदाहरणों का भी उल्लेख किया। जैसे मसालों को पीसकर पाउडर बनाना सबसे आम तरीका है। यह उपयोग में आसानी और लंबी शेल्फ लाइफ प्रदान करता है। विभिन्न प्रकार के मसालों को मिलाकर मिश्रण बनाया जा सकता है। यह विभिन्न व्यंजनों के लिए तैयार मसाला मिश्रण प्रदान करता है। मसालों से आवश्यक तेल निकाला जा सकता है, जिन्हें खाद्य पदार्थों, सौंदर्य उत्पादों, और दवाओं में उपयोग किया जाता है। साथ ही उन्होंने क्रायोजेनिक ग्राइडिंग के बारे में बताया जो एक ऐसी तकनीक है जिसमें मसालों को बेहद कम तापमान पर जमा दिया जाता है और फिर उन्हें पीसकर पाउडर बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में, द्रव नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है, जो मसालों को -196 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर देता है। इस अत्यधिक ठंडे तापमान पर, मसाले भंगुर हो जाते हैं और आसानी से पीस जाते हैं।
उन्होंने बताया कि बाजार में मसालों के कई मूल्यवर्धित उत्पाद उपलब्ध हैं जैसे बिस्कुट, सौंफ आंवला स्क्वैश, सौंफ प्रास, धनिया आंवला स्क्वैश आदि। उन्होंने बताया कि मूल्यवर्धन से किसानों की आय बढ़ती है, रोजगार के अवसर पैदा होते हैं और देश को विदेशी मुद्रा भी मिलती है।
कार्यक्रम आयोजक डॉ बी एस बधाला व डॉ संतोष देवी समोता ने बताया कि इस एकदिवसीय ऑनलाइन ऑफलाइन कॉन्फ्रेंस में विश्वविद्यालय के 14 कॉलेजों के 892 शोधकर्ता छात्र एवं सभी इकाई के रेडी विद्यार्थियों ने ऑनलाइन व ऑफ लाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से लाभान्वित हुए, इस कार्यक्रम में प्रसार शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ आई एम खान, डॉ डी के जाजोरिया, डॉ अख्तर हुसैन, कृषि महाविद्यालय भुसावर के अधिष्ठाता डॉ उदयभान सिंह, डॉ उमेद सिंह ओला, डॉ लोकेश चौधरी सहित सभी कॉलेज के रेडी इंचार्ज ने भाग लिया।