
भरतपुर ( यतेन्द्र पाण्डेय्) ( जागरूक जनता)। क्षमावणी पर्व या ‘क्षमा दिवस’ दिगंबर जैन धर्मावलंबियों द्वारा मनाया जाने वाला एक खास पर्व है। इसे क्षमावाणी, क्षमावानी या क्षमा पर्व भी कहते हैं। दिगंबर अनुयायियों द्वारा यह पर्व आश्विन मास कृष्ण पक्ष की एकम के दिन मनाया जाता हैं। श्वेतांबर ऐसे अपने आठ दिवसीय पर्यूषण पर्व के अंत में मनाते हैं इस पर पर सबसे अपने भूलों की क्षमता करते है!
इस पर्व पर अपने आत्मिक शुद्धता के लिए सबसे अपने भूलों की क्षमा याचना की जाती है। यहां माफी मांगने का मतलब यह नहीं कि आप गलत हैं और दूसरा सही।
क्षमा भाव वीरो का आभूषण———
दसलक्षण या पयुर्षण महापर्व के 10 दिन मन का अहंकार दूर करके झुकने की कला, दूसरों का दिल जीतने की, किसी के भी दिल को ठेस न पहुंचाने की शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा हमें देते हैं और निरंतर क्षमा के पथ पर आगे बढ़ाते हुए मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं। दसलक्षण पर्व के दिनों में किया गया त्याग और उपासना हमें जीवन की सच्ची राह दिखाते है। जैन धर्म में ‘क्षमा’ भाव को वीरों का आभूषण कहा गया है। क्षमा भाव धर्म का आधार है और यह सभी के लिए हितकारी होता है। क्रोध-कषाय सदा सभी के लिए अहितकारी माना गया है।
क्षमा शब्द मानवीय जीवन की आधारशिला———
वैदिक ग्रंथों में भी क्षमा की श्रेष्ठता पर बल दिया गया है। क्षमा शब्द मानवीय जीवन की आधारशिला है। जिसके जीवन में क्षमा है, वही महानता को प्राप्त कर सकता है। क्षमावाणी हमें झुकने की प्रेरणा देती है। दसलक्षण पर्व हमें यही सीख देता है कि क्षमावाणी के दिन हमें अपने जीवन से सभी तरह के बैर भाव-विरोध को मिटाकर प्रत्येक व्यक्ति से क्षमा मांगनी चाहिए और हम दूसरों को भी क्षमा कर सकें यही भाव मन में रखना चाहिए। यही क्षमावाणी है।
हमें चाहे छोटा हो या बड़ा क्षमा पर्व पर सभी से दिल से क्षमा मांगी जानी चाहिए। क्षमा कभी भी सिर्फ उससे नहीं मांगी जानी चाहिए, जो वास्तव में हमारा दुश्मन है। बल्कि हमें हर छोटे-बड़े जीवों से क्षमा मांगनी चाहिए। जब हमें क्रोध आता है तो हमारा चेहरा लाल हो जाता है और जब क्षमा मांगी जाती है तो चेहरे पर हंसी-मुस्कुराहट आ जाती है। क्षमा हमें अहंकार से दूर करके जीवन में विनम्र बनना सिखाती है। क्षमावाणी पर्व पर क्षमा को अपने जीवन में उतारना ही सच्ची मानवता है।
जीवन का दीपक क्षमा मांग कर ही जलाया जा सकता है————
हम क्षमा उससे मांगते हैं, जिसे हम धोखा देते है। जिसके प्रति मन में छल-कपट रखते है। जीवन का दीपक तो क्षमा मांग कर ही जलाया जा सकता है। अत: हमें अपनी पत्नी, बच्चों, बड़े-बुजुर्गों, पड़ोसी हो या हमारे मिलने-जुलने वाले सभी से क्षमा मांगना चाहिए। क्षमा मांगते समय मन में किसी तरह का संकोच, किसी तरह का खोट नहीं होना चाहिए। हमें अपनी आत्मा से क्षमा मांगनी चाहिए, क्योंकि मन के कषायों में फंस कर हम तरह-तरह के ढ़ोंग, स्वांग रचकर अपने द्वारा दूसरों को दुख पहुंचाते हैं। उन्हें गलत परिभाषित करने और नीचा दिखाने के चक्कर में हम दूसरों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखते जो कि सरासर गलत है।
हमें तन, मन और वचन से चोरी, हिंसा, व्याभिचार, ईर्ष्या, क्रोध, मान, छल, गाली, निंदा और झूठ इन दस दोषों से दूर रहना चाहिए। यही इस पर्व की सीख हैं। दसलक्षण पर्व के दिनों में किया गया त्याग और उपासना हमें मोक्ष के मार्ग पर ले जाती है। दसलक्षण पर्व जैन धर्म के दस लक्षणों को दर्शाते हैं। जिनको अपने जीवन में उतार कर हर मनुष्य मुक्ति का मार्ग अपना सकता है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि—————-
तमाम बुराई के बाद भी हम अपने आपको प्यार करना नहीं छोड़ते तो फिर दूसरे में कोई बात नापसंद होने पर भी उससे प्यार क्यों नहीं कर सकते?
सिख गुरु गोविंद सिंह एक जगह कहते हैं———- ‘
यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करता है, तो उसे क्षमा कर दो, क्योंकि क्षमा करना वीरों का काम है।’
पर्यूषण पर्व अंतःकरण में दया क्षमा मानवता जगाता है——–
भगवान महावीर स्वामी और हमारे अन्य संत-महात्मा भी प्रेम और क्षमा भाव की शिक्षा देते हैं। अत: यही सत्य है कि हर मनुष्य के अंदर क्षमा भाव का होना बहुत जरूरी है।
भगवान महावीर ने हमें आत्मकल्याण के लिए दस धर्मों के दस दीपक दिए हैं। प्रतिवर्ष पर्युषण आकर हमारे अंत:करण में दया, क्षमा और मानवता जगाने का कार्य करता है। जैसे हर दीपावली पर घर की साफ-सफाई की जाती है, उसी प्रकार पर्युषण पर्व मन की सफाई करने वाला पर्व है।
क्षमा याचना अपने अंतःकरण से करें——–:
हमें सबसे पहले क्षमा-याचना हमारे मन से करनी चाहिए। जब तक मन की कटुता दूर नहीं होगी, तब तक क्षमावाणी पर्व मनाने का कोई अर्थ नहीं है अत: जैन धर्म क्षमाभाव ही सिखाता है।
हमें भी रोजमर्रा की सारी कटुता, कलुषता को भूलकर एक-दूसरे से माफी मांगते हुए और एक-दूसरे को माफ करते हुए सभी गिले-शिकवों को दूर कर क्षमा पर्व मनाना चाहिए। दिल से मांगी गई क्षमा हमें सज्जनता और सौम्यता के रास्ते पर ले जाती है।
आइए, इस क्षमा-पर्व पर हम अपने मन में क्षमा भाव का दीपक जलाएं और उसे कभी बुझने न दें ताकि क्षमा का मार्ग अपनाते हुए धर्म के रास्ते पर चल कर मोक्ष को प्राप्त हो सकें। अत: हम दोनों ही गुण स्वयं में विकसित करें, क्योंकि कहा जाता हैं कि माफी मांगने से बड़ा माफ करने वाला होता है।
अंत में इतना ही- ——–
क्षमा पर्व का पावन दिन है
भव्य भावना का त्योहार,
विगत वर्ष की सारी भूलें
देना हमारी आप बिसार।।



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