पाकिस्तान में आटे की किल्लत हो गई है। कमर्शियल गैस सिलेंडर 10 हजार रुपए में बिक रहा है। हालात ऐसे हैं कि जनता एक-एक रोटी के लिए आपस में भिड़ने को तैयार है। लेकिन इसी पाकिस्तान की धरती के नीचे 2 ट्रिलियन डॉलर का खजाना छिपा है।
इस्लामाबाद : विदेशी कर्ज का बोझ और खाने-पीने की चीजों का अभाव, भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। पाक पीएम शहबाज शरीफ कभी चीन और सऊदी अरब से लोग मांगते हैं तो कभी यूरोप में अपना दुखड़ा रोते हैं। लेकिन पाकिस्तान सरकार इस बात से बेखबर है कि असली ‘खजाना’ तो उसके अपने देश में छिपा है। अगर इसे बाहर निकाल लिया जाए तो देश की कंगाली बड़ी आसानी से दूर की जा सकेगी। बात पाकिस्तान के सबसे उपेक्षित प्रांत बलूचिस्तान की हो रही है। आखिर इस अशांत राज्य में ऐसा क्या है जो अंग्रेजों से लेकर देश की हुकूमत, सभी को इसमें दिलचस्पी रही है।
बलूचिस्तान की रेत के नीचे भारी मात्रा में प्राकृतिक खनिज मौजूद हैं। यहां यूरेनियम, सोना, तांबा, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस और अन्य धातुएं मौजूद हैं जो किसी खजाने से कम नहीं हैं। लेकिन यह खजाना बलूचों का सबसे बड़ा दुश्मन है। पाकिस्तान सरकार यह खजाना चीन को देकर अपनी किस्मत बदलना चाहती है। निवेश और इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर चीन इस खजाने को हासिल करना चाहता है जिसका बलूच विरोध करते हैं। अक्सर इस इलाके में हिंसक झड़प और हमले होते रहते हैं जिनमें चीनी नागरिकों और बलूच विद्रोहियों की मौत होती है।
खजाना बदल सकता है मुल्क के हालात
पाकिस्तान सरकार की नजर मुख्य रूप बलूचिस्तान की सोने और तांबे की खदानों पर है। यहां की रेको दिक खान दुनिया की सोने और तांबे की खदानों में से एक है। यह चगाई जिले में स्थित है जिसमें करोड़ों टन धातु मौजूद है। अनुमान है कि इस खान में 590 करोड़ टन खनिज भंडार मौजूद है और प्रति टन भंडार से 0.22 ग्राम सोना और 0.41 फीसदी तांबा निकाला जा सकता है। अगर यह खजाना सरकार को मिल जाए तो बिना कर्ज लिए मुल्क के हालात बदल सकते हैं।
छिपा है 40 करोड़ टन सोना
मीडिया रिपोर्टर्स दावा करती हैं कि इस खान में 40 करोड़ टन सोना छिपा हो सकता है जिसकी अनुमानित कीमत लगभग दो ट्रिलियन डॉलर तक हो सकती है। पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में बसे बलूचिस्तान की सीमाएं ईरान और अफगानिस्तान से मिलती हैं। इस प्रांत का क्षेत्रफल करीब आधे पाकिस्तान के बराबर है। देश की कुल आबादी के सिर्फ 3.6 फीसदी लोग यहां रहते हैं। प्राकृतिक खजाने के ऊपर बैठा बलूचिस्तान आज भी देश के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है।