संत शिरोमणि श्री लिखमीदासजी महाराज की 272 वीं जयंती पर आयोजित हुए कई कार्यक्रम।
पीपाड़ शहर @जागरूक जनता
गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर संत शिरोमणि श्री लिखमीदास जी की 272 वीं जन्म जयंती मनाई गई। इस अवसर पर समाज के लोगों के द्वारा संत श्री लिखमीदास महाराज की मूर्ति के समक्ष पुष्प अर्पित कर जयंति मनाई गई।
लिखमीदास जी मंदिर सब्जी मंडी में प्रातः 9:15 बजे महा आरती का आयोजन किया गया एवं प्रसादी वितरण की गई। पूजा अर्चना के बाद मालीयान सब्जी मंडी में भव्य जागरण का आयोजन किया गया जिसमें लिखमीदासजी की जीवनी पर प्रकाश डाला व भजन कीर्तन का आयोजन किया गया। इस दौरान नगरपालिका चेयरमैन समुदेवी सांखला, सब्जी मंडी अध्यक्ष श्रवण राम टाक, माली छात्रावास अध्यक्ष गोबर सिंह कच्छावाह , पूर्व पालिका अध्यक्ष प्रभाकर टाक, सचिव लिखमाराम सांखला, न्यु सैनिक स्कूल के डायरेक्टर संपत राज सैनी, रामस्वरूप टाक, सुरेंद्र सिंह सांखला, नरेश सांखला, पार्षद सत्यनारायण भाटी, पूर्व पार्षद बाबूलाल सांखला, जगदीश, महेंद्र चौहान ,अजय कुमार टाक, माणक सोलंकी, एडवोकेट जेठाराम चौहान, मनोनीत पार्षद सोहनलाल सांखला सहित सैकड़ों गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
संत श्री लिखमीदास जी महाराज के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी जो सैनी समाज के सभी भाइयो और बहनों को पता होनी चाहिए।
आज हम लिखमीदास जी महाराज के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण और अनोखी बाते है जो आप सभी के साथ शेर करने जा रहे हैं। सभी एक बार जयकारा जरूर लगाएं बोलो सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज की जय।
सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज का जन्म सैनी समाज ( क्षत्रिय ) परिवार में विक्रम संवत 1807 आषाढ़ सुदी 15 पूर्णिमा को हुआ। ( तत्दनुसार 8 जुलाई 1750 में हुआ ) वे राजस्थान के नागौर जिले के निवासी थे। उनके जन्म सैनिक क्षत्रिय समाज के रामुदास जी सोलंकी के यहाँ पर हुआ था। उनकी माता जी का नाम श्रीमति नत्थी देवी है।
सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज रामदेव जी के बहुत बड़े भक्त थे। वे अपने बाल्यकाल से ही ईश्वर की भक्ति और आराधना में लीन रहते थे।
सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज का विवाह परसराम जी टाक की सुपुत्री श्रीमति चैनी देवी के साथ हुआ था। उनके दो पुत्र और 1 पुत्री थी। जीनमे उनके बड़े पुत्र का नाम जगरामजी तथा छोटे पुत्र का नाम गेनदासजी था। और उनकी पुत्री का नाम बडिंगेना था।
सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज रामदेव जी के बहुत बड़े भक्त थे। वे अपने बाल्यकाल से ही ईश्वर की भक्ति और आराधना में लीन रहते थे।
राजस्थान की पवित्र धारा शक्ति भक्ति और आस्था का त्रिवेणी संगम है। यहां समय पर ऐसे संत-महात्माओं ने जन्म लिया है जो अपने तपोबल से प्राणीमात्र का कल्याण करने के साथ-साथ दूसरों के लिये प्रेरणा स्त्रोत भी बने। ऐसे ही बिरले सन्तों में से एक थे-स्वनामधन्य संत षिरोमणि श्री लिखमीदासजी महाराज ।
सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज नागौर जिले के मुख्यालय के समीप चैनार गांव के रहने वाले थे। उन्होंने बाल्यकाल से ही भक्ति और आस्था में बहुत रुचि थी। वे भगवान के प्रति आस्ता भक्ति पूजा अर्चना गुणगान में लगे रहते थे। उन्होंने अपनी अनन्य ईश्वर भक्ति के बल पर साक्षात भगवान रामदेव जी के दर्शन किये थे।
सन्त श्री लिखमीदासजी महाराज की बाबा रामदेव जी के प्रति आगाध श्रद्धा एवं भक्ति की भावना थी। वे पैतृक कृशि कर्म को करते हुए ही श्री हरि का गुणगान किया करते, रात्रि जागरण में जाया करते तथा साधु-संतो के साथ बैठकर भजन-कीर्तन करते थे।
सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज ने सैंकड़ो पर्चे दिए हैं और हजारों भजन और दोहो कि रचना की थी। जिनमे से कुछ इस प्रकार से है। घोड़े से पैदल हाथ नही आना, अमरपुरा को मुस्लिम से खाली कराना, महाराजा भीमसिंह जी को चारभूजा के दर्शन देना, हाकम द्वारा क्षमा मांग कर आपको छोड़ना, बाड़ी में सिंचाई करना, एक समय में दो गावो में जागरण देना। ऐसे बहुत सारे पर्चे दिए थे।
सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज ने विक्रम संवत 1887 आसोज बदी 6 ( षष्ठी ) 8 सितंबर 1830 को गाँव अमरपुरा में जीवित समाधि ली। वर्तमान में धाम के महंत जितुराम जी महाराज हैं। उनकी जयंती पूरे भारत वर्ष में गुरु पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। सन्त श्री लिखमीदास जी महाराज की अब तक 271 वी जयन्ती मनाई जा चुकी है। और आज 13 जुलाई 2022 ( गुरु पूर्णिमा ) को उनकी 272 वी जयंती मनाई गई।
रिपोर्ट:- मेहराम गहलोत , पीपाड़ शहर जोधपुर राजस्थान