उदयपुर @ jagruk janta। जिन्दगी, उम्र और हालात किस मोड़ पर कब कैसी करवट ले, कोई नहीं जानता। सब कुछ बदल जाता है, सिर्फ कुछ ही पलों में। मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिला के जमुड़ी कस्बे के नरेन्द्र रौतेल (32) के साथ वक्त ने कुछ ऐसा ही किया कि रफ्तार से चल रही जिन्दगी को ब्रेक लग गया, ट्रेन के पहियों ने उसके दोनों पैर उससे छीन लिए।
नरेन्द्र 2016 में उड़ीसा के रेडाखोल में एक कंट्रक्शन कम्पनी में सुपरवाईजर का काम करता था। नोटबंदी के दौरान वह घर पर पैसे भेजने के लिए ट्रेन से बैंक के लिए निकला। बामूर रेल्वे स्टेशन से थोड़ा पहले सिगनल न मिलने से ट्रेन रूकी हुई थी। पैसा भेजकर कार्यस्थल पर जल्दी पहुंचने में वह ट्रेन से वहीं उतर ही रहा था कि ट्रेन चल पड़ी। नरेन्द्र के दोनों पांव पहियों की चपेट में आ गये। ईलाज के दौरान दोनों पैर घुटने के नीचे से काटने पड़े। भुवनेश्वर दिल्ली और मध्यप्रदेश में दो वर्ष तक ईलाज और मदद के लिए चक्कर लगाये पर सब जगह निराशा ही मिली। इसी दौरान भाई की मौत, भाभी का अन्यत्र चले जाना और खुद की दिव्यांगता दिन ब दिन घर की दयनीय दशा का कारण बनती जा रही थी। तभी उसे नारायण सेवा संस्थान की जानकारी मिली। वह 2019 में पहली बार संस्थान में आया जहां संस्थान की निदेशक वंदना अग्रवाल और प्रास्थेटिक एण्ड ऑर्थोटिक प्रमुख डॉ. मानस रंजन साहू ने हौसला दिया। कृत्रिम पांव लगाए, चलने की ट्रेनिंग दी साथ ही उसे कम्प्यूटर चलाने का प्रशिक्षण भी दिया गया। 6 मार्च 2022 को संस्थान में सिलाई सीख रही सकलांग नीलवती के साथ विवाह सम्पन्न हुआ।
कुछ दिन पहले नरेन्द्र ने संस्थान से अनुरोध किया कि पति-पत्नी संयुक्त व्यापार शुरू कर परिवार के 8 जनों का भरण पोषण करना चाहते है। इसके लिए उसे अपने गांव से 2-3 किलोमीटर रोजाना आना जाना होगा और इतनी दूरी कृत्रिम अंग के सहारे तय करना दुभर है। संस्थान ने दिव्यांग एवं निर्धन नरेन्द्र के परिवार को सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए सोमवार को करीब एक लाख लागत की बेट्री ऑपरेटेड मोटराईज्ड व्हीलचेयर निःशुल्क भेंट की। जो सड़क और घर दोनों जगह काम आ सकती है। मदद पाकर नीलवती और नरेन्द्र मुस्कुरा उठे।
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