वाराणसी। संत समाज शनिवार 4 जून को भगवान आदि विश्वेश्वर की आराधना शुरू करने ज्ञानवापी जाएगा। यह घोषणा गुरुवार को वाराणसी के केदार घाट स्थित विद्या मठ में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने की। उनकी घोषणा की जानकारी मिलते ही पुलिस-प्रशासन परेशान हो गया है। हालांकि अफसरों ने अभी कुछ भी कहने से इंकार किया है।
बीते दिनों ज्योतिष और द्वारिका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि ज्ञानवापी में प्रकट हुए भगवान आदि विश्वेश्वर की आराधना शुरू कराओ।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सनातन धर्म के सबसे बड़े आचार्य हैं। इसके अलावा धर्म की नजर से काशी उत्तर क्षेत्र में आती है। शंकराचार्य महाराज ही इस उत्तर क्षेत्र के सबसे प्रमुख धर्मगुरु हैं। यही वजह है कि उनके आदेश के बाद संत समाज जोश में है।
जो शिव को नहीं जानता, वह मूर्ति को फव्वारा ही कहेगा
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा- ‘शंकराचार्य महाराज अभी मध्य प्रदेश में हैं। उनकी सेवा के लिए मैं अभी तक वहां था। उनके आदेश से अब वाराणसी आया हूं। यह कहा जा रहा है कि अभी निर्णय नहीं हुआ है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिला है या नहीं। हमारा कहना है कि अभी यह भी तो नहीं कहा जा रहा है कि वह शिवलिंग नहीं है। ‘
उन्होंने आगे कहा- ‘एक पक्ष शिवलिंग कह रहा है और दूसरा पक्ष फव्वारा कह रहा है। इसका मतलब एक ही बात दोनों पक्ष कह रहे हैं। जब हम शिव की बात करते हैं, तो उसका मतलब यह है कि वह शिव जिन्होंने अपने माथे की जटा पर गंगा को धारण कर रखा है। जिनकी जटा से गंगा निकलती है।’
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती आगे बोले- ‘सनातन धर्म में एक ही देवता तो हैं, जिनके माथे से पानी निकलता है, वह शिव हैं। जो व्यक्ति शिव को नहीं जानता, उनके कथानक को नहीं जानता, उनकी महिमा को नहीं जानता या जानकर भी अनजान बनना चाहता है, वह उनकी मूर्ति को फव्वारा ही तो कहेगा।’
सामने प्रकट हुए हैं शिव, उनकी पूजा हमारा कर्तव्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने अपने कंप्यूटर की स्क्रीन पर राष्ट्रपति भवन से लेकर अलग-अलग जगह के मुगलकालीन फव्वारे दिखाए। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव की तस्वीरें दिखाईं। फिर उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले पत्थर की संरचना को दिखाकर कहा कि यह भगवान आदि विश्वेश्वर हैं।
उन्होंने आगे कहा- ‘ज्ञानवापी में भगवान प्रकट हुए हैं तो उनका स्नान, शृंगार, पूजा और राग-भोग बहुत जरूरी है। हमारा कानून कहता है कि जो भगवान की प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति है, वह तीन साल के बालक जैसी मानी जाएगी। उनकी देख-रेख के लिए एक सेवायत रखने की भी जरूरत बताई गई है। मगर, हमारे देश की कोर्ट हमारी भावना की परवाह न करते हुए हमें 4 जुलाई तक इंतजार करने के लिए कह रही है।’
उन्होंने कहा- ‘अब हमारी आंखों के सामने भगवान प्रकट हुए हैं, तो उनकी पूजा और सेवा करना हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है। नहीं तो हम पाप के भागी बनेंगे। इसलिए धर्म और शास्त्र के रास्ते पर चलते हुए हमने अपने गुरु के आदेश से भगवान आदि विश्वेश्वर की नियमित पूजा शुरू करने का निर्णय लिया है।’