शिव दयाल मिश्रा
भारतीय संस्कृति में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना गया है। कई लोग मनु का विरोध करते हैं, मगर मनु ने ही हमें सभ्यता के साथ जीने का मार्ग बताया है। अगर मनु का विरोध किया जाता है तो फिर हम मनुष्य भी नहीं रहेंगे। हमें जानवरों की श्रेणी में ही माना जाएगा। मनु स्मृति में 8 प्रकार के विवाह बताए गए हैं। जिनमें ब्रह्म विवाह, देव विवाह, आर्ष विवाह, प्रजापति विवाह, गंधर्व विवाह, असुर विवाह, राक्षस विवाह एवं पैशाच विवाह। इन विवाहों को सम्पन्न कराने की भी अलग-अलग विधियां हैं। यहां हम इन विवाहों की विधि का वर्णन नहीं कर रहे हैं। हमें वर्तमान में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन विवाहों से दो-चार होना पड़ रहा है। मगर किसी को ये नहीं पता कि उक्त जोड़ा किस पद्धति से विवाह बंधन में बंधा है। हम यहां पर दो प्रकार के विवाहों के बारे में बात करेंगे। पहला विवाह संस्कारी विवाह, जिसमें लड़के और लड़की के माता पिता की सहमति से विवाह सम्पन्न होता है और विवाह विच्छेद की संभावना नगण्य रहती है। हालांकि आजकल कई तरह के विवाद और कानूनों की आड़ में विवाह टूट जाते हैं। वैसे भारतीय संस्कृति में तो विवाह बंधन टूटने का कोई विधान ही नहीं है, जबकि दम्पत्ति का जीवन सहजता से नहीं गुजरने पर मुस्लिम धर्म में तलाक और ईसाई धर्म में डायवर्स की व्यवस्था की गई है। पहले समाज और परिवार का भय ऐसा था कि कोई भी युवक-युवती बगैर परिवार की सहमति के विवाह नहीं करते थे, मगर आजकल के युवक-युवतियों को समाज और परिवार का डर नहीं रहा जिसके कारण कुछ युवक-युवतियां राह भटक जाते हैं और बालिग होते ही अपने जीवन को अपने तरीके से जीने के लिए घर से भाग कर प्रेम विवाह कर लेते हैं। ऐसे में कुछ समय बाद प्रेम और विवाह तो गायब हो जाता है और विवाद शेष रह जाता है। विवाद के चलते लंबे समय तक न्यायालयों के चक्कर लगाते-लगाते सुखी जीवन के क्षण ही समाप्त हो जाते हैं। दूसरी तरफ संस्कार विवाह होते हैं जिसमें संस्कार, सुख और विवाह तीनों रहते हैं। इसलिए युवाओं को चाहिए कि वे सुखी जीवन के लिए भारतीय संस्कार ही अपनाएं।
[email protected]
.
.
.