- नारायण सेवा संस्थान का 37वां दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह
- -लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने नवयुगलों को दिया आशीर्वाद
उदयपुर @ jagruk janta। नारायण सेवा संस्थान के 37वें निःशुल्क दिव्यांग एवं निर्धन युवक-युवती सामूहिक विवाह समारोह के दूसरे दिन रविवार को लियों का गुड़ा स्थित संस्थान के सेवा महातीर्थ में 21 जोड़ों ने पवित्र अग्नि को साक्षी बनाकर फेरे लिए। मुख्य अतिथि पूर्व राज परिवार के सदस्य लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ थे। संस्थान संस्थापक पद्मश्री कैलाश ‘मानव’, कमला देवी अग्रवाल, अध्यक्ष प्रशान्त अग्रवाल, वंदना अग्रवाल व विशिष्ट अतिथियों संजय भाई दया-दक्षिणी अफ्रीका, सोहनलाल-एकता चढ्ढा व भरत सोलंकी-यू.एस.ए. द्वारा गणपति पूजन के साथ विवाह की पारम्परिक विधियां आरम्भ हुई। मुख्य अतिथि लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने कहा कि सेवा भाव से किया गया कार्य हमेशा खुशी देता है। यह भारतीय समाज की शुरू से विशेषता भी रही है। मेवाड़ तो हमेशा ही इस दिशा में आदर्श रहा है। उन्होंने कहा मेवाड़ इतिहास, संस्कृति और पर्यटन की वजह से तो दुनियाभर में पहचान रखता ही है, नारायण सेवा ने इस पहचान को और व्यापकता दी है। कैलाश ‘मानव’ ने कहा कि जिन दिव्यांग भाई-बहिनों ने अपनी निःशक्तता को दुर्भाग्य मानते हुए अपनी गृहस्थी बसने की कभी कल्पना भी न की होगी, आज समाज के सहयोग और भव्यता से उनकी यह साध पूरी हो रही है।
संस्थान अध्यक्ष प्रशान्त अग्रवाल ने कहा कि सपने देखना किसे अच्छा नहीं लगता और जब कोई अकल्पनीय सपना साकार हो उठता है तो उसकी खुशी को बयां करना भी आसान नहीं होता। ऐसे ही पलों को समेटे इस विशाल प्रांगण में 21 दिव्यांग जोड़ों ने ज़िन्दगी की नई शुरूआत की हैं। ये जोड़े राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों के हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 36 विवाहों में 2130 जोड़े अपना घर-संसार बसाकर खुश हैं। इन जोड़ों में कोई पांव से तो कोई हाथ से दिव्यांग है। किसी जोड़े में एक विकलांग है तो साथी सकलंाग है। ऐेसा जोड़ा भी है जो नेत्रहीन है।
मेहंदी रस्म के दौरान विभिन्न राज्यों से आई महिला अतिथियों ने ढोलक की थाप पर मेहंदी के परम्परागत गीत-नृत्यों की मनोहारी प्रस्तुतियां दी। वंदना अग्रवाल व पलक अग्रवाल की टीम ने जब स्नेह से मेहंदी लगाई तो ये पल दुल्हनों के लिए अविस्मरणीय हो गया।
विवाह समारोह के दौरान प्रातः 9.15 बजे अग्रसेन चैराहे से संस्थान परिसर तक दूल्हा-दुल्हन की बिन्दोली निकाली गई। जिसमें बैण्ड बाजों की धुन पर विभिन्न प्रान्तों से आए अतिथियों ने जमकर ठुमके लगाए। बाद में सभी दूल्हों ने क्रम से तोरण की रस्म अदा की। इसके बाद हाइड्रोलिक स्टेज पर गुलाब पंखुड़ियों की बौछार के बीच नव युगलों ने परस्पर वरमाला पहनाई। इसके पश्चात 21 वेदी-कुण्डों पर उपस्थित आचार्यों ने वैदिक विधि से पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न करवाया। विदाई की वेला में दूल्हनें डोली में बेठकर साजन के घर जाने के लिए संस्थान परिसर से बाहर आई जहां दुल्हें व उनके परिवार तथा अन्य अतिथि मौजूद थे। इस दौरान सभी की आंखे नम हो उठी। संस्थान के वाहनों में गृहस्थी के सामान व अतिथियों द्वारा प्रदत्त उपहारों के साथ नव दम्पती को खुशी-खुशी अपने-अपने घरों के लिये विदा किया गया। समारोह का संस्कार चैनल से सीधा प्रसारण किया गया। मंच संचालन महिम जैन ने किया।
एक जो ऐसा भी- ज्योति बनेे संगीत के सुर
दिव्यांगों के चेहरों पर मुस्कान सजाने वाले सामूहिक विवाह में गरीब परिवार का एक जोड़ा नेत्रहीन भी था। नीमच निवासी मोहन कोई काम सीखने की ललक लेकर दो वर्ष पूर्व जोधपुर गया था। वहां अंध विद्यालय में उसने नेत्रहीन संगीत प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। अपनी प्रस्तुति से पहले पूजा के सुरों को सुन… उसके माधुर्य का कायल हो गया। पूजा को भी मोहन का गीत भा गया। प्रतियोगिता के बाद दोनों ही पहली मुलाकात में एक-दूसरे की ओर आकर्षित हो गए और परस्पर चाहने लगे। अपने-अपने घर लौटने के बाद घंटों मोबाइल पर भी बात होने लगी। दोनों के बीच जीवन का हमसफर होने की सहमति बनी और परिजनों को अपने निर्णय की जानकारी दी। परिवार की गरीबी विवाह के आयोजन में असमर्थ थे। कुछ ही माह पूर्व इन्होंने नारायण सेवा संस्थान से सम्पर्क किया। जिसने उन्हें उनके सपने को मूर्त रूप दे दिया।