शिव दयाल मिश्रा
शर्म और गर्व शब्दों का अपने आप में बहुत मायने है। मगर समय के साथ-साथ इनके मायने भी बदल गए हैं। पहले कोई भी गलत काम करने पर आदमी को शर्म महसूस होती थी। और… गर्व… गर्व शब्द तो अपने आप ऊंचाईयों को समेटे हुए है। हम बात करते हैं शर्म और गर्व की। कुछ वर्षों पहले तक गाय पालने वालों को बड़ी इज्जत से देखा जाता था। गाय को पशु धन में गिना जाता था। मगर समय बदल गया। समय के साथ कितनी ही बातें बदल गई। अब गाय पालने वाले को गंवार समझा जाता है। अगर कोई गाय पालने लग जाए तो अड़ोस-पड़ोस वाले निगम में शिकायत करने लग जाते हैं। मच्छर होना, गंदगी होना आदि..आदि बातों को लेकर। गाय पालने वाले को गंवार समझने लगे हैं इसलिए गाय पालने वालों को अब शर्म भी आने लगी है जबकि दूसरी तरफ कुत्ते पालना एक स्टेटस ङ्क्षसबल बन गया है। कई लोगों को सुबह-शाम कुत्ते की चाकरी करते हुए देखा जा सकता है। उन्हें शौच के लिए घुमाने ले जाते हैं। उन्हें नहलाते हैं, खिलाते हैं, किसी कार्यक्रम में जाते हैं तो वहां भी कई बार साथ में छोटे से कुत्ते को किसी मैम की गोद में देखा जा सकता है। अगर किसी काम से बाहर जाना पड़ गया तो कुत्ते को या तो साथ ले जाओ या फिर कहीं डॉग होम में छोड़ के जाओ। कहीं से कहीं तक डॉग सेवा के इन तमाम कामों में चेहरे पर शिकन तक नहीं मिलती। बिस्तरों में भी इन्हें सुला लिया जाता है। जबकि पहले कुत्तों को घर में घुसने तक नहीं दिया जाता था। अगर कोई कुत्ता पालता था तो वह घर के गेट के बाहर ही कुत्ते को रोटी डाल दिया करता था। मगर अब तो वह एक घर का सदस्य बन चुका है। समय का फेर और किस्मत की बात है तभी तो गाय पालने में शर्म और कुत्ता पालने में गर्व की अनुभूति हो रही है।
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