फ्रांस से 26 राफेल-M खरीदेगा भारत:ये मौजूदा राफेल से कितना अलग और भारत के लिए कितना जरूरी

‘एक वक्त पर हिंद महासागर में चीन के 3-6 युद्धपोत रहते हैं। इनमें से कुछ गल्फ ऑफ ओमान के पास तैनात रहते हैं, तो कुछ महासागर के पूर्वी तरफ। यहां संघर्ष का खतरा कम है, लेकिन फिर भी हम युद्ध की आशंका से इनकार नहीं कर सकते। पाकिस्तानी नौसेना बहुत तेजी से डेवलप हो रही है और वह अपने बेड़े में लगातार नए युद्धपोत जोड़ रही है। चीन ने पिछले 10 सालों में कई जहाजों और पनडुब्बियों को शामिल किया है। इसके अलावा चीन तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर पर भी काम कर रहा है।’

भारत के नौसेना प्रमुख एडमिरल हरि कुमार ने 29 अप्रैल को यह बयान दिया था। दो महीने बाद 13-14 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस दौर पर जा रहे हैं। फ्रांस के ‘बैस्टिल डे’ परेड समारोह में उन्हें बतौर चीफ गेस्ट आमंत्रित किया गया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत अपनी नौसेना के लिए फ्रांस से 26 राफेल-M यानी मैरीटाइम लड़ाकू विमान खरीदने जा रहा है। इसके साथ ही इस दौरे पर मोदी 3 स्कॉर्पीन क्लास की पनडुब्बी की डील भी कर सकते हैं।

ये भारत के लिए कितना अहम है और यह पहले से मौजूद राफेल से कितना अलग है? स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बी क्या है और फ्रांस से इस डील के क्या मायने हैं?

राफेल-M यानी राफेल का नौसेना वर्जन। इसे एयरक्राफ्ट कैरियर्स यानी विमानवाहक पोत पर तैनात करने के हिसाब से तैयार किया गया है। अगर फ्रांस से डील पक्की होती है तो राफेल-M लड़ाकू विमान को INS विक्रांत और INS विक्रमादित्य पर तैनात किया जाएगा। इन दोनों विमानवाहक पोत पर फिलहाल मिग-29 लड़ाकू विमान तैनात हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत 26 राफेल-M खरीदेगा, इनमें 22 सिंगल सीटेड राफेल-M के साथ चार ट्रेनर विमान शामिल हैं। इसे फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन ने बनाया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में 13 जुलाई को रक्षा अधिग्रहण परिषद यानी DAC की बैठक होनी है। बैठक का एजेंडा 26 राफेल-M लड़ाकू विमानों की खरीद को मंजूरी देना है।

हाल ही में नौसेना ने औपचारिक रूप से रक्षा मंत्रालय को 5 से 6 बिलियन डॉलर, यानी 41 से 49 हजार करोड़ रुपए में राफेल-M लड़ाकू विमान खरीदने के अपने इरादे के बारे में इन्फॉर्म किया था।

राफेल-M पहले से मौजूद राफेल लड़ाकू विमान से कितना अलग?

सितंबर 2016 में 59,000 करोड़ रुपए की मेगा डील के तहत भारत पहले ही अपनी वायुसेना के लिए फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीद चुका है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, राफेल के दोनों वैरिएंट में लगभग 85% कॉम्पोनेंट्स एक जैसे हैं। इसका मतलब है कि स्पेयर पार्ट्स से जुड़ी कभी भी कोई कमी या समस्या नहीं होगी।

सामान्य लड़ाकू विमान को एयरक्राफ्ट कैरियर के हिसाब से चेंज किया जाता है। इसकी वजह ये है कि आमतौर पर एयरपोर्ट के स्ट्रिप 3 हजार मीटर लंबे होते हैं। वहीं INS विक्रांत सिर्फ 200 मीटर में मैनेज करेगा। इसी वजह से विमानवाहक पोत पर अरेस्टेड रिकवरी सिस्टम लगे होते हैं।

जैसे INS विक्रांत पर 3 अरेस्ट वायर लगे हैं। लैंडिंग के वक्त एयरक्राफ्ट की टेल इनमें से किसी वायर पर हुक हो जाएगी। इससे वो कम दूरी पर ही रुक जाएगा। इसे टेलहुक कहते हैं। इसी तरह के फीचर से राफेल-M भी लैस है। वहीं सामान्य राफेल में इस सिस्टम की जरूरत नहीं होती है।

जब नौसेना के पास मिग-29 था तो राफेल-M की जरूरत क्यों पड़ी?

दरअसल, INS विक्रांत के एविएशन फैसिलिटी कॉम्प्लेक्स यानी AFC को मिग-29 फाइटर प्लेन के लिहाज से तैयार किया गया था। मिग रूस में बने फाइटर प्लेन हैं, जो हाल के सालों में अपने क्रैश को लेकर चर्चा में रहे हैं। इसलिए भारतीय नौसेना अगले कुछ सालों में अपने बेड़े से मिग विमानों को पूरी तरह से हटाने जा रही है। मिग में आ रही दिक्कतों से नौसेना को ये एहसास हो गया कि मिग की जगह उसे या तो राफेल-M या F-18 सुपर हॉर्नेट लड़ाकू विमान लाने की जरूरत है। नौसेना ने पिछले साल कहा था कि विक्रांत को मिग-29 के लिहाज से डिजाइन किया गया था, लेकिन वह इसकी जगह बेहतर डेक-बेस्ड फाइटर प्लेन की तलाश कर रही है।

इसके लिए फ्रांस के राफेल-M और अमेरिका के बोइंग F-18 ‘सुपर हॉर्नेट’ फाइटर प्लेन की खरीद के लिए भी बातचीत चल रही है, लेकिन अब नौसेना फ्रांस के राफेल-M को खरीदने पर सहमत हुई है। दरअसल, नौसेना ने सबसे पहले फ्रांसीसी राफेल-M और अमेरिकी F-18 सुपर हॉर्नेट विमान की गोवा में टेस्टिंग की। टेस्टिंग के बाद नौसेना ने रक्षा मंत्रालय को बताया कि राफेल-M उसकी जरूरतों के लिए सबसे बेहतर है। इस तरह से टेस्टिंग में राफेल-M ने बाजी मारी और नौसेना इसकी डील के लिए आगे बढ़ गई। आने वाले सालों में नौसेना की योजना तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के नौसेना वर्जन को विक्रांत पर तैनात करने की है। तेजस देश में बन रहा ट्विन-इंजन डेक-बेस्ड फाइटर प्लेन है। हालांकि DRDO द्वारा बनाए जा रहे तेजस को तैयार होने में अभी 5-6 साल का वक्त लगेगा। इसके 2030-2032 तक नेवी को मिल पाने की संभावना है।

तीन और स्कॉर्पीन-क्लास अटैक सबमरीन बनाने का समझौता क्या है?

मोदी के दौरे पर मेक इन इंडिया के तहत मझगांव डॉकयार्ड्स लिमिटेड यानी MDL में 3 और स्कॉर्पीन (कलवारी) क्लास अटैक की पनडुब्बियों को बनाने के लिए दोबारा ऑर्डर मिलने की भी उम्मीद है।

भारत ने 2005 में फ्रांस के नेवल ग्रुप से स्कॉर्पीन-क्लास सबमरीन बनाने के लिए 3.75 अरब डॉलर यानी करीब 28.6 हजार करोड़ का समझौता किया था। इन सबमरीन को पब्लिक सेक्टर की कंपनी मझगांव डॉकयार्ड्स लिमिटेड ने फ्रांस के सहयोग से देश में ही बनाया है।

Date:

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

महाराष्ट्र में प्रचंड जीत: मुंबई के बीजेपी दफ्तर में लगा ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का पोस्टर, चर्चाएं तेज

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में महायुति ने महाविकस अघाड़ी को...