विश्व कल्याण की कामना करने से स्वत: ही आपका परमार्थ सिद्ध होगा, जो संपूर्ण प्राणियों का चिंतन करते हैं, वे ही भगवान कृष्ण को प्राप्त करते है : मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्रदासजी महाराज


  • श्री गोकरूणा चातुर्मास आराधना महोत्सव
  • दुष्टों में दुष्टता तब नष्ट होगी, जब उनके भीतर अधर्म खत्म होकर धर्म स्थापित होगा, फिर वे धर्मात्मा, सज्जन या साधु बन सकेंगे : मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्रदासजी महाराज

रेवदर। श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा की शाखा श्री मनोरमा गोलोक नंदगांव केसुआ में श्री गोकरूणा चातुर्मास आराधना महोत्सव का मंगलमय भागवत कथा के चौथे दिन हजारों गोभक्तों को संबोधित करते हुए मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्रदास जी महाराज ने कहा कि संपूर्ण विश्व के कल्याण का भाव मन में होना चाहिए। हम भगवान और संतों के पास जाकर खुद के कल्याण की कामना करते है। यही हम विश्व कल्याण की प्रार्थना करेंगे, तो हमारे कल्याण की प्रार्थना अलग से नहीं करनी पड़ेगी। अपने स्वयं के कल्याण की प्रार्थना करने में स्वार्थ आता है। विश्व कल्याण की कामना करने पर स्वार्थ चला जाता है और आपका कल्याण तो स्वत: ही हो जाएगा। विश्व कल्याण की कामना करते ही आपका परमार्थ सिद्ध हो जायेगा। इसके बाद मलूक पीठाधीश्वरजी महाराज ने कहा कि प्रहलादजी ने ये कभी नहीं चाहा कि दुष्टों का विनाश हो। दुष्ट तो सदैव प्रसन्न रहने चाहिए, मगर वे अपने अधर्म की वजह से ना तो प्रसन्न रह सकते हैं ना किसी को प्रसन्न देख सकते हैं। दुष्टता ही अधर्म है। दुष्टों में दुष्टता तब खत्म होगी, जब वे अपने भीतर अधर्म को नष्ट करेंगे और धर्म को स्थापित करेंगे। हमें कभी दुष्ट को खत्म करने की कामना नहीं करनी चाहिए। हमें भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि उनकी दुष्टता खत्म हो ताकि वे भी धर्मात्मा, सज्जन और साधु बने सके। यह केवल उनके भीतर धर्म की स्थापना से ही संभव है। वरना वे अपनी दुष्टता में जलते रहेंगे। कथा में उन्होंने कहा कि प्राणी परस्पर एक दूसरे के कल्याण का चिंतन करें। संसार में दुख क्यों व्याप्त है? क्योंकि हम एक दूसरे को सुखी देखना नहीं चाहते हैं। हम एक दूसरे को सुख पहुंचाने का निश्चय कर ले। यह बात गीताजी में भगवान कृष्ण ने कही कि जो संपूर्ण प्राणियों का चिंतन करते हैं। वे मुझे प्राप्त करते है।

गंगा स्नान का महत्व

मानव जीवन में गंगा स्नान का इतना महत्व है कि वर्ष में एक बार गंगा स्नान करने का अवसर मिल जाए फिर अपने प्रारब्ध के अनुसार शरीर कहीं भी छूट जाए उस जीव की दुर्गति नहीं होगी। वो नरक नहीं जाएगा, वह केवल उत्तम लोको में ही जाएगा। गंगा स्नान के लिए मर्यादा से पवित्र होकर स्नान करके अपना नित्यकर्म करके गंगा जी जाए, बिना जूता चप्पल पहने गंगा जी के निकट जाए और प्रणाम करें और प्रणाम करके बोले आप साक्षात भगवान का स्वरूप हो। हमें आपमे प्रवेश करना पड़ रहा है। अपना पैर स्पर्श करना पड़ेगा। आप इस स्पर्श के अपराध को क्षमा करें। इसी भाव से पहले उस जल को अपने मस्तक पर लगाना चाहिए। इसके बाद प्रणाम कर संकल्प करके फिर गंगा जी में स्नान करें और गंगा जी का स्नान करने के बाद फिर बिना शरीर को मले बाहर आना चाहिए। गंगा स्नान करने के पश्चात फिर शरीर को पोंछे नहीं, उस जल को शरीर पर ही सूखने दें। फिर गंगाजी का पूजन करें। सूखे वस्त्र धारण करके गंगाजी का भारतीय वेदलक्षणा गाय के दूध की धारा, चंदन, केसर, कुमकुम, धोती और आपके सामर्थ्य के अनुसार उपलब्ध सामग्री से पूजा अर्चना करें। वर्ष में एक बार गंगा स्नान करने से वर्षभर तक उसका शरीर पर प्रभाव रहता है।

श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ

गोवत्स विट्ठल कृष्ण महाराज ने बताया कि अनिरुद्धदास जी महाराज ने सैंकड़ो गोभक्तो के साथ ओरछा रामराजा सरकार से मंगलमय ध्वजा लाई। चातुर्मास के दौरान प्रतिदिन श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के तहत सुबह 6 से 7 बजे प्रभातफेरी पूज्य श्री राधा कृष्ण जी महाराज के सानिध्य में हो रही है। 7 से 9 बजे श्रीमद् भागवत सस्वर मूल पाठ वाराणसी के विद्वानों द्वारा किया जा रहा है। 9 से 11 बजे रामचरितमानस का पाठ पूज्य श्री लक्ष्मणदास जी शास्त्री द्वारा किया जा रहा है। अपराहन 3 से 6.30 बजे श्रीमद् भागवत कथा जगद्गुरु द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर श्री राजेंद्रदास देवाचार्य जी महाराज द्वारा की जा रही है। वहीं रात्रि में 8 से 10 बजे रसमय संकीर्तन हो रहा है।

वृंदावन की पूनम दीदी ने किया रसमय संकीर्तन

चातुर्मास महोत्सव के दौरान प्रतिदिन रात्रि में 8 बजे रसमय संकीर्तन का आयोजन हो रहा है। जिसमें हजारों गोभक्त और साधु, संतो ने संकीर्तन का आनंद लिया। रात्रि में वृंदावन से आए पूनम दीदी के रसमय संकीर्तन में गोभक्तो ने मंगलमय आनंद लिया। 26 जुलाई को राहुल चौधरी दिल्ली और 27 जुलाई को निकुंज कामरा एवं आरुषि गंभीर दिल्ली द्वारा आयोजित होगा। इस दौरान गीता प्रेस गोरखपुर के प्रबंध ट्रस्टी देवीदयाल अग्रवाल मौजूद रहे।


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