शिव दयाल मिश्रा
आम आदमी तो कोरोना की मार से मरा पड़ा है। धंधा, रोजगार सब चौपट हुए पड़े हैं। अब जब कोरोना से थोड़ी राहत मिलने लगी है तो लोगों ने भी अपने काम-धंधे शुरू कर दिए हैं। पिछला वर्ष कोरोना की भेंट चढ़ गया और इस वर्ष भी अगस्त का महीना खत्म हो चुका है मगर लोगों का जीवन सही तरीके से पटरी पर नहीं लौटा है। एक तरफ आम आदमी और व्यापारी वर्ग अपने काम-धंधे को शुरू कर रहा है तो दूसरी तरफ आर्थिक संकट से जूझता नगर निगम भी अपना आर्थिक स्वास्थ्य को चंगा करने की जुगत में लग गया है। कहते हैं ना, कि भेड़ के शरीर पर ऊन कोई नहीं छोड़ता। वही हाल आम जनता का हो रहा है। भेड़ की पीठ पर तो ऊन आएगी तब कटेगी, मगर जनता के शरीर पर ऊन अभी उगी भी नहीं है, काटने वाले पहले ही आ गए। कहीं बिजली में टैक्स बढ़ा दिया तो कहीं गैस सिलेण्डरों की कीमत बढ़ गई। पैट्रोल-डीजल की कीमतें तो वैसे ही आसमान छू रही है। ऐसे में जनता को आर्थिक राहत मिलने की बजाए नए-नए गड्ढे खुद गए जिन्हें भरना पड़ रहा है। इस समय नगर निगम ने भी अभियान चलाया हुआ है जिसके तहत मकान-दुकानों की नाप-जोख सहित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर लगे होर्डिंग्स की भी जांच हो रही है जिसमें कई जगह गलत नाप के नाम पर जुर्माना वसूलने की बात भी की जा रही है। ऐसे में कई जगह नाप जोख करने वाली टीम का विरोध हो रहा है तो कहीं समझदारी से काम निकाला जा रहा है। कहीं-कहीं झूठे-सच्चे आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। कई स्थानों पर तो पार्षद आदि से सिफारिश भी करवाई जाती है। कई व्यापारियों को तो इस अभियान के बारे में जानकारी भी नहीं है। वे इसे झूठा समझ रहे हैं। इसलिए इस अभियान की पूर्व जानकारी व्यापारियों तक पहुंचती तो बेहतर होता।
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