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शिव दयाल मिश्रा
पैदल अथवा वाहन पर चलते समय अचानक कान में हुर्र की आवाज सुनाई देती है। चौंक कर देखते हैं तो एक बाइक पर सवार तीन-चार आवारा किस्म के लड़के सरपट दौड़ते हुए दिखाई देते हैं। ऐसे आवारा किस्म के लड़के आजकल खूब दिखाई देते हैं। सुबह का समय हो, दोपहर का समय हो, शाम का समय अथवा रात हो। इन आवारा किस्म के युवाओं के लिए कोई समय सीमा नहीं है कोई कायदे कानून नहीं है। कोई पुलिस का भय नहीं है। पुलिस के सामने लाल बत्ती में भी ये सड़क पार कर जाते हैं और पुलिस इनको मूक दर्शक बनी देखती रहती है। दूसरी तरफ अगर कोई सभ्य आदमी अथवा पति-पत्नी बाइक पर जा रहे होते हैं और उनके साथ कोई तीसरी सवारी विशेष परिस्थिति में जा रही हो अथवा किसी एक सवारी बिना हेलमेट के हो तो यातायात पुलिस के जवान उसे भागकर रोक लेते हैं और तुरन्त उसकी बाइक या स्कूटर की चाबी निकाल कर साइड में ले जाते हैं। मिन्नतें करने या कारण बताने के बावजूद उनको बिना चालान के छोड़ा नहीं जाता है। जबकि पुलिस को आवारा किस्म के युवाओं पर विशेष नजर रखने की जरूरत है। इनमें किशोर वय और नाबालिग भी शामिल हैं। ऐसे आवारा स्कूल टाइम के समय एवं प्रात: पार्कों के इर्द-गिर्द ज्यादा दिखाई देते हैं और बच्चियों के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। हालांकि इस समय स्कूल कॉलेज बंद होने के कारण ये कालोनियों में चक्कर काटते दिखाई दे जाते हैं। किसी से इनकी कहासुनी हो जाए तो ये तुरन्त उसके साथ मारपीट कर भाग जाते हैं। ये कौन लोग हैं और क्यों इस तरह से घूमते हैं। ये समझ से परे है। बाइक सवार ऐसे आवारा किस्म के युवा संकरी गलियों में भी हल्ला-मचाते हुए दौड़ते देखे जाते हैं। चाहे इनकी तेज गति से कोई इनकी चपेट में आकर घायल हो जाए। इनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ये असामाजिक तत्व कभी किसी संवेदनशील मामलों में अशांति उत्पन्न कर सकते हैं। समय रहते पुलिस के साथ ही जागरूक नागरिकों को इनके छुपे मंसूबों का पता करना जरूरी है। वरना ये कभी भी उपद्रव का कारण बन जाएंगे। ये तो भागकर कहीं छुप जाएंगे लेकिन आमआदमी इनके कारनामों की चपेट में आ जाएंगे।
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