शिव दयाल मिश्रा
कोरोना महामारी की त्रासदी से मुक्ति दिलाने के लिए सरकार सख्ती से लॉकडाउन का पालन करवा रही है और जनता को वेक्सीन लगवाने के लिए समझा रही है। गाइड लाइन के अनुसार कहीं भी भीड़ जुटाने की मनाही की जा रही है। यहां तक कि शादी-विवाह और मांगलिक कार्यों एवं दाहसंस्कार में भी बहुत ही सीमित 20-25 आदमियों की इजाजत दी जा रही है। मगर कुछेक लोग और जन प्रतिनिधियों के ऊपर इन तमाम बातों का कोई असर ही नहीं दिखाई दे रहा है। उनके लिए तो ये गाइड लाइन है ही नहीं। जनप्रतिनिधि किसी भी बहाने अपनी लोकप्रियता का मूल्यांकन करते ही रहते हैं। कहीं शादी-विवाह में तो कहीं जन्म दिन मनाने के नाम पर भीड़ जुटा ही लेते हैं। और जब भीड़ जुटाने की बात आती है तो कोई न कोई बहाना बनाकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। अप्रैल-मई में जिस वक्त कोरोना से आमजन त्राहि-त्राहि कर रहे थे उस समय इनका कोई अता-पता भी नहीं था। सामाजिक संस्थाएं हमेशा किसी न किसी बहाने समाज के लिए अच्छा ही करती रहती हैं। अभी पिछले हफ्ते सांसद का जन्म दिन क्षेत्र में बड़े जोरशोर से मनाया गया। इसी बहाने सामाजिक संस्थाओं ने कई जगह रक्तदान शिविर लगाए गए। रक्तदान शिविर इसलिए कि महामारी के चलते अस्पतालों में रक्त की कमी न हो और बीमार के जीवन की रक्षा की जा सके। मगर रक्तदान शिविर के दौरान जैसे कोई शादी विवाह का उत्सव चल रहा हो, ऐसी भीड़ इकट्ठी हो गई। नाश्ता, पानी और धक्कमपेल देखी गई। रक्तदान शिविर में रक्तदाता कम और छुटभैये नेता और वार्ड पार्षदों सहित पार्षद पतियों ने भी बड़े जोर शोर से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। रक्तदान शिविर में आए कई पार्टी कार्यकर्ताओं के मुंह पर मास्क भी नहीं था। अगर था तो वह मास्क ठोडी पर लटका हुआ था। यहां तक मंच पर बैठे लोगों का भी यही हाल था। सांसद की नजर में आने के लिए और उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए धक्का-मुक्की तक हुई। सोचने की बात है सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटाकर हम कोरोना से बचाव नहीं उसे आमंत्रित ही कर रहे हैं। कोरोना अभी गया नहीं है वो तो आक्रमण करने के लिए भीड़ की तलाश में ही रहता है। एक तरफ उद्यमी लॉकडाउन में सरकार से छूट की गुहार लगा रहे हैं तो दूसरी ओर ये नेता भीड़ जुटाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे।
[email protected]
.
.
.
.