अज्ञात पिंड को मिल सकता है सौरमंडल में नौंवें ग्रह का दर्जा!


  • गुरुत्वीय बल से हलचल पैदा कर रहा है एक अज्ञात पिंड
  • नेप्च्यून की कक्षा के बाहर होने के संकेत

बेंगलूरु। प्लूटो की कक्षा से दूर एक ऐसे अज्ञात पिंड के अस्तित्व का पता चला है जिसे सौरमंडल के नौंवें ग्रह का दर्जा मिल सकता है। यह अज्ञात पिंड नेप्च्यून की कक्षा के बाहर सौरमंडल के सदस्य वामन ग्रहों की कक्षा में हलचल पैदा कर रहा है।

भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के प्रोफेसर (सेनि) रमेश कपूर ने बताया कि यह हलचल गुरुत्वाकर्षण बल के कारण है। अब तक मिले संकेतों से वैज्ञानिक सौरमंडल में एक नए ग्रह की मौजूदगी के प्रति गंभीर हो गए हैं। नेप्च्यून की कक्षा के बाहर कई पिंड खोजे गए जो सूर्य का परिभ्रमण करते हैं। इन्हें कायपर बेल्ट के पिंड कहा जाता है। ऐसे कुछ पिंडों (सेडना, एरिस आदि वामन ग्रहों) की कक्षाओं में आशा के विपरीत उनकी गतिविधि में सूक्ष्म विचलन पाए गए हैं। ये विचलन किसी अज्ञात पिंड के गुरुत्व बल के ही कारण हो सकते हैं। इसे सौरमंडल का अज्ञात किंतु नौंवा ग्रह मान लिया गया। गणनाओं के आधार पर यह पता चला कि यह पिंड पृथ्वी से लगभग 10 गुणा भारी और 4 गुणा बड़ा हो सकता है। किंतु वर्तमान में यह अपनी कक्षा में सूर्य के सापेक्ष दूरतम बिंदु के आसपास होना चाहिए जो कि लगभग 1 हजार एयू (1-एयू यानी पृथ्वी एवं सूर्य के बीच की दूरी यानी 15 करोड़ किमी) है।

दरअसल, वर्ष 2006 में अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (आइएयू) ने अपनी महासभा के दौरान ग्रहों के लिए नए मानक गढ़ दिए। इससे वर्ष 1930 से सौरमंडल के नौवें ग्रह के रूप में विख्यात प्लूटो ग्रह की अवनति हो गई। प्लूटो को बौने ग्रहों की श्रेणी में डाल दिया गया। बहुत से वैज्ञानिक अभी भी जतन कर रहे हैं कि कैसे भी आइएयू प्लूटो को फिर से ग्रहों की श्रेणी में रख दे।

बड़े ग्रहों पर भी डाला प्रभाव
प्रोफेसर कपूर ने बताया कि पिछले कुछ दशकों से ऐसे ईशारे मिल रहे हैं जिनके अनुसार प्लूटो की कक्षा से दूर कोई अज्ञात पिंड है। इसे खोजने में कई वैज्ञानिक बड़े चाव से जुटे हुए हैं। इस अज्ञात पिंड के विषय में अनुमान डॉक्टर माइक ब्राउन और बेटिजिन ने दिए थे। यह सुझाया गया कि इसका परिभ्रमण काल 1700 वर्ष हो सकता है और इसने सौरमंडल के बड़े ग्रहों की कक्षाओं को सूर्य के सापेक्ष 6 डिग्री तक झुका दिया है। वर्ष 2016 में आकाश में 20 गुणा 20 डिग्री का एक क्षेत्र पहचाना गया किंतु इसकी अनुमानित चमक बेहद क्षीण होने कारण यह एक बड़ी समस्या बन गई।

धरती से 6 गुणा भारी
पिछले 5 वर्षों में काफी अध्ययन के बाद कुछ ही दिन पूर्व इन्ही दो वैज्ञानिकों का एक नया शोध पत्र इस विषय में आया जिसे खगोल विज्ञान की महत्वपूर्ण पत्रिका एस्ट्रोनोमिकल जर्नल में प्रकाशित किए जाने के लिए स्वीकृत किया गया है। इन्होंने बाहरी सौरमंडल के कायपर बेल्ट पिंडों की गतिविधि पर विशेष ध्यान दिया और नौंवें ग्रह के विषय में अधिक सटीक आंकड़े सुझाए हैं। नए अनुमानों में महत्वपूर्ण बात यह आई है कि यह पिंड अनुमानों के बजाय ज्यादा नजदीक और अधिक चमकीला है। इसका भार पृथ्वी से 6 गुणा अधिक होना चाहिए। सूर्य से इसकी निकटतम दूरी 300 एयू और अधिकतम दूरी 450-500 एयू के बीच होनी चाहिए। इसकी कक्षा पृथ्वी की कक्षा के मुकाबले 16 डिग्री झुकी है। यह प्लूटो के मुकाबले ६०० गुणा कम चमकीला है। इन वैज्ञानिकों का कहना है इस अज्ञात पिंड को देखा तो जा सकता है किंतु इसे ढूंढ पाना बेहद मुश्किल है। इन वैज्ञानिकों ने इसकी मौजूदगी की दिशा भी बताई है। यह आकाश के उस हिस्से में हो सकता है जिस ओर वृष तारासमूह है।


Jagruk Janta

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