तीनों कृषि कानूनों की वापसी के मायने हार-जीत!


शिव दयाल मिश्रा
तीनों
कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे किसान आंदोलन के बाद आखिर केन्द्र सरकार ने तीनों कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी। घोषणा के बाद तरह-तरह की हार और जीत की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कोई इसे किसानों की जीत और सरकार की हार बता रहा है तो कोई इसे चुनावी पैंतरा बता रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पुराने अंदाज में कृषि कानूनों को वापस लेने की अचानक घोषणा कर सबको आश्चर्य में डाल दिया। किसी भी योजना की बिना किसी हो-हल्ले के घोषणा करना प्रधानमंत्री मोदी की खासियत रही है। नोटबंदी से लेकर कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा तक सभी अचानक किया गया। हालांकि टीवी चैनलों पर किसान कानूनों के बारे में खूब डिबेट हुई, मगर किसी को ये अंदाजा भी नहीं था कि ये किसी दिन अचानक वापस हो जाएंगे। हालांकि किसानों ने अपने आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा अभी तक नहीं की है। इसके पीछे उनकी मंशा क्या है ये तो वही जाने, या फिर किसान आंदोलन को परदे के पीछे हवा देने वाले जाने। प्रधानमंत्री ने प्रकाश पर्व गुरु नानक जयंती और देव दीपावली के दिन इन कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर लोगों को शुभ संदेश दिया है। प्रधानमंत्री के इस निर्णय की देश और विदेशों से भी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। इस निर्णय से ये तो साफ है कि अगर कोई निर्णय देश और देश की जनता के लिए सही नहीं है तो सरकार उसे बदलने मेें परहेज भी नहीं करेगी। सरकार ने इस कानून को रद्द कर विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं छोड़ा। प्रधानमंत्री ने मंझे हुए खिलाड़ी की तरह मास्टर स्टोक मार कर सबको सन्न कर दिया। मगर जो लोग किसानों की आड में कह रहे थे कि सरकार को तीनों कृषि कानून वापस ले लेने चाहिए। अब वही लोग कहने लग गए हैं कि इतना समय गुजर जाने और कितने ही किसानों की मौत के बाद कानून को वापस क्यों लिया। ये तो वही कहावत चरितार्थ हो गई कि एक पिता और पुत्र पैदल पैदल जा रहे थे, जबकि उनके साथ एक गधा भी चल रहा था। लोग कहने लगे कि ये लोग मूर्ख हैं जो गधा साथ होते हुए भी दोनों पैदल जा रहे हैं। इस बात को सुनकर पिता ने अपने पुत्र को गधे पर बैठा दिया। अब लोग उन्हें देखकर कहने लगे कि ये कैसा बेटा है, बेचारा बूढ़ा पिता तो पैदल चल रहा है और ये जवान बेटा गधे पर बैठा है। यह सुनकर बेटा गधे से उतर गया और पिता गधे पर बैठ गया। तो फिर लोगों ने कहा कि ये कैसा बाप है खुद गधे पर बैठा है और बेटा पैदल चल रहा है। यह सुनकर दोनों ही गधे पर बैठ गए। अब लोगों ने कहा कि ये कैसे निर्दयी हैं इनको एक दुबले-पतले गधे पर भी दया नहीं आ रही है जो दोनों इस बेजुबान जीव पर बैठे चले जा रहे हैं। इसलिए कहने वाले तो कुछ भी कह सकते हैं। क्योंकि उन्हें तो कुछ भी कहना है। मगर सरकार का ये भावी जीत के लिए पीछे खींचा हुआ कदम हो सकता है। क्योंकि अगले वर्ष कई राज्यों में चुनाव हैं जिन्हें देखते हुए डीजल पैट्रोल आदि की कीमतों में कमी किए जाने को भी इसी नजरिये से देखा जा रहा है। आगे और भी कई रियायतें मिलती दिखाई दे रही है। [email protected]


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