न्यायपालिका देश की सर्वोच्च संस्था है। हम सब इस संस्था का सम्मान करते हैं। हमारे देश में बहुत कुछ अच्छा है तो बहुत कुछ अच्छा नहीं है। पीडि़त को न्याय समय पर नहीं मिलना भी मन को पीड़ा पहुंचाता रहता है। बार-बार कोर्ट के चक्कर लगाओ, तारीखें लाओ और घर जाओ। फिर वही क्रम। ऐसे कई बरस निकल जाते हैं। न्याय की इंतजार में कई लोग इस संसार से कूच कर जाते हैं। उनकी पीढिय़ां तारीखों पर जाती देखी जा सकती है। कई मामले तो ऐसे होते हैं जिनका कब फैसला हुआ, फैसला हुआ या नहीं ये भी पता नहीं लगता। तारीखों पर जाने वाले दुनिया से चले जाते हैं और उनके पीछे वाले मुकदमों में न्याय का इंतजार ही करते रह जाते हैं। पिछले दिनों हमारी राष्ट्रपति ने भी न्याय प्रक्रिया से जुड़े हुए जिम्मेदारों को यहां तक कह दिया कि मैं जो नहीं कह पाई उसे भी समझना चाहिए। बहुत से निरपराध तारीखों पर तारीखों के चलते जेलों में जीवन काटते रहते हैं और कई अपराधी वकीलों की वाकपटुता के कारण खुले घूमते रहते हैं। इसी प्रकार उपराष्ट्रपति भी न्याय प्रक्रिया पर चिंता जता चुके हैं। उन्होंने न्याय प्रक्रिया को बहुत नजदीक से देखा है। पीडि़त को न्याय मिले और समय पर मिले। व्यवस्था ये होनी चाहिए। हालांकि लोक अदालतों के जरिए भी बहुत से मामलों का निपटारा किया जा रहा है। फिर भी मुकदमों की संख्या ङ्क्षचतनीय आंकड़ों तक है। उनके भी शीघ्र निपटारे की व्यवस्था होनी चाहिए। हमारे देश में न्याय प्रक्रिया बहुत धीमी है उसके लिए किसी हद तक पुलिस भी जिम्मेदार है। पुलिस भी अपनी रिपोर्ट देने में विलम्ब करती है। उसके कई कारण होते हैं जो आम आदमी को दिखाई नहीं देते। अब चूंकि देश के दो सर्वोच्च पदों द्वारा न्याय प्रक्रिया पर ङ्क्षचता जाहिर की गई है तो निश्चित ही हमें न्याय प्रक्रिया में सुधार देखने को मिलना चाहिए।
शिव दयाल मिश्रा
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