काश! भागवत ‘पंडितों’ के बजाए विद्वान शब्द का प्रयोग कर लेते!


  • शिव दयाल मिश्रा
    इन दिनों रामचरित मानस की चौपाई पर देशभर में विवाद छिड़ा हुआ है। इससे संत समाज और भगवान श्रीराम के भक्त पहले से ही आहत हैं। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान कि जातियां भगवान ने नहीं, पंडितों ने बनाई’ भी लोगों को आहत कर गया। यहां समझ और बोल का ही फर्क है। अधिकांश लोग पंडित शब्द से तात्पर्य ब्राह्मण जाति के लिए समझ रहे हैं, जबकि पंडित शब्द का अर्थ विद्वान के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। समाज में सुधार करे उसे पंडित ही कहा जाता है। उदाहरण के लिए राजा राम मोहन राय, दयानन्द सरस्वती, कबीरदास, संत रैदास और भी बहुत से समाज सुधारक हुए हैं, ये सभी पंडित (विद्वान) कहलाते हैं। अब हर व्यक्ति को तो यह समझाया नहीं जा सकता कि ये पंडित शब्द ब्राह्मणों के लिए नहीं है। इस समय हर कोई ब्राह्मणों को निशाने पर ले रहे हैं। समाज की हर बुराई का ठीकरा ब्राह्मणों के ऊपर फोड़ा जा रहा है। जबकि हमारे देश में संस्कृति के अनुसार सारी जातियों को जोडऩे का काम ब्राह्मणों द्वारा किया गया है। जन्म से लेकर विवाह और मरण तक के कार्यों में समाज के हर वर्ग को जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए जैसे ही किसी के घर में बच्चे-बच्चियों का जन्म होता है, तुरन्त ब्राह्मण के पास पहुंचते हैं। ब्राह्मण के बताए अनुसार वहां नाई, कुम्हार, दाई, चूड़ा पहनाने वाले मनिहार, सफाईकर्मी आदि सभी को बुलाया जाता है और उन सबके सहयोग से कार्य सम्पन्न करने का विधान बनाया हुआ है। इसी तरह कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह आदि अकेला परिवार या जाति द्वारा नहीं हो सकता। विवाह में ब्राह्मण द्वारा सामग्री लिखवाई जाती है जिसमें रोली, मोली, धूप, गुलाबी कपड़े, बुलावे के लिए नाई, चाक पूजन के लिए कुम्हार के घर से कलश, ताशे बजाने वाले-बैण्डबाजे, खाती के घर से फेरों के लिए बांस का मंडप, तोरण के लिए चुडक़ली, सफाई व्यवस्था। इसी प्रकार मृत्यु होने पर भी सारे समाज मिलकर कार्य सम्पन्न करते हैं। कहने का तात्पर्य है कि समाज के हर जाति-वर्ग को जोडक़र उनके सहयोग से कार्य सम्पन्न करने की व्यवस्था की गई है। ये समाज की समरसता का प्रमाण है। मगर हर तरह का आरोप ब्राह्मणों पर लगाया जा रहा है जैसे कि समाज में फैली तमाम बुराईयों का कारण ब्राह्मण हो। ब्राह्मण तो हमेशा से गरीब और सीमित साधनों में रहते हुए विद्या का दान और समाज को जोडऩे का काम करता आ रहा है। ऐसे में भागवत का पंडितों पर जातियां बनाने की बात कह देना सही नहीं कहा जा सकता। क्योंकि आम आदमी पंडित शब्द को ब्राह्मणों से जोडक़र ही देखता है।
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Jagruk Janta

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