शिव दयाल मिश्रा
सन् 2019 के दिसम्बर माह में विश्व में कोरोना ने दस्तक दी थी। इसी कारण कोविड-19 नाम प्रचलन में आया। को- कोरोना, वि- वायरस, ड (डी) दिसम्बर-19 यानि कोविड-19। दिसम्बर 19 से लगातार यह वायरस 20 में चला, 21 में चला और अब 22 में भी चैन नहीं लेने दे रहा। आखिर ये बीमारी है या हनुमानजी की लंका में फैलाई गई पूंछ। जिसने लंका के जल जाने तक सिमटने का नाम ही नहीं लिया। ये कोरोना के नए-नए वायरस कहां से निकल कर आ रहे हैं। इसका अभी तक किसी को पता ही नहीं चल रहा है। या फिर जानबूझ कर आंखें मूंदे हुए हैं। अगर ये वायरस यूं ही आते रहे तो फिर हो गई दुनिया की छुट्टी। क्या कर पाएंगे लोग। कैसे जिएंगे। कैसे अपनी दिनचर्या पूरी करेंगे। कुछ समय बीतता है जीवन पटरी पर आने लगता है तो फिर से टीवी समाचारों में और अखबारों में कोरोना मरीजों की बड़ी-बड़ी डरावनी खबरें आने लग जाती है। तीन साल होने को आए, क्यों नहीं इस आधुनिक विज्ञान के युग में अभी तक इस कोरोना का कोई तोड़ पुख्ता रूप से नहीं निकल पाया। मेरा तो दिमाग ही चकरघन्नी हो गया कि आखिर ये वायरस है क्या। ये तो कम्प्यूटरों में आने वाले वायरस की तरह हो गया। जिस प्रकार कम्प्यूटर में वायरस आया और सारी फाइलें डैमेज हो जाती है उसी प्रकार ये कोरोना वायरस शरीर को डेमेज कर रहा है। कम्प्यूटर को बचाने के लिए एन्टीवायरस उसमें लोड करना पड़ता है तब जाकर वह कम्प्यूटर सही से काम करता है। मगर ये कम्प्यूटर का एन्टीवायरस लिमिटेड समय के लिए होता है। समयावधि समाप्त होने के बाद फिर से एन्टीवायरस डालो, वरना फिर कम्प्यूटर खराब। कारण है कि कम्प्यूटर में मौजूद एन्टीवायरस समयावधि के बाद वायरस बन जाता है जो कम्प्यूटर को खराब करता है। कहीं कोरोना वायरस भी तो ऐसा ही नहीं है कि एक समय अवधि के बाद वेक्सीन ही वायरस बना रही हो। क्योंकि कम्प्यूटर को सही रखने के लिए एन्टीवायरस बनाने वाले एक के बाद एक एन्टीवायरस बनाते हैं और बेचते हैं। हालांकि ये कोरोना से भयभीत मेरे मस्तिष्क में कौंधते विचार हैं कोई सटीक उदाहरण तो नहीं है फिर भी इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। [email protected]
व्यापार की राह पर तो नहीं चल पड़ी कोरोना वैक्सीन!
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