बीकानेर। हाथों में चमड़े की बनी डोलची उसमें पानी भरकर साथ वाले की पीठ पर छपाक से पानी का वार, पानी का वार एक-दूसरे पर जितना तेज होगा और जितना दर्द होगा, प्रेम उतना ही बढ़ेगा। जी हां यह पारंपरिक पानी का खेल बीकानेर की हर्ष और व्यास जाति के बीच हर साल होता है।
इस खेल में दो लोग आपस में खेलते हैं। चमड़े से बनी इस डोलची में खेलने वाला पानी भरता है और सामने खड़े अपने साथी की पीठ पर जोर से पानी से वार करता है। फिर उसे भी जवाब देने का मौका मिलता है जितनी तेज आवाज होती है उतना ही खेल का मजा आता है और जोश बढ़ता है। हाथों में डोलचियां, पानी से भरे बड़े कड़ाव और इन कड़ाव से पानी लेकर कर एक-दूसरे की पीठ पर वार रंग की बजाए पानी से होली खेलते हैं। बीकानेर का यह डोलची मार खेल प्रसिद्ध है।
यहां रंगो से नहीं पानी से होली खेलने की परंपरा है। खेल का अंत लाल गुलाल उड़ाकर और पारंपरिक गीत गाकर किया जाता है। डोलची मार होली में बच्चे, बूढ़े, जवान हर वर्ग के लोग हिस्सा लेते हैं। इस खेल में काफी पानी लगता है। इसलिए उसके लिए पहले से तैयारियां की जाती है। इस दिन बड़े-बड़े बर्तनों में पानी भरा जाता है। अगर पानी कम पड़ जाए तो पानी के टैंकर मंगवाए जाते हैं। इस होली में हजारों की संख्या में लोग एक-दूसरे की पीठ पर डोलची से पानी मारते हैं और होली खेलते है। होली की यह परंपरा लगभग सैंकड़ो साल पुरानी है। सालों से चली आ रही इस परंपरा को बीकानेर में आज भी बड़े आनंद के साथ मनाया जाता है।