प्लग ट्रे में कोकोपीट व वर्मिकुलाइट के उपयोग से पौधों में बनी रहती हैं नमी – डॉ बलराज सिंह
जोबनेर. श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बलराज सिंह ने कृषि विश्वविद्यालय के 13 कॉलेजों की छात्राओं को संबोधित करते हुए उच्च गुणवत्ता युक्त रोपण सामग्री के बारे में विस्तृत व्याख्यान दिया । इस व्याख्यान में विभिन्न महाविद्यालयों के 194 विद्यार्थियों ने भाग लिया ।कुलपति डॉ बलराज सिंह ने बताया कि भारत सरकार की आत्मनिर्भर स्वच्छ पौधा कार्यक्रम (एसीपी) के तहत उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलों के लिए रोग मुक्त रोपण सामग्री की उपलब्धता में सुधार करने के लिए नई पहल है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बागवानी फसलों की उपज बढ़ाना, फसल की गुणवत्ता में सुधार करना है। डॉ बलराज सिंह ने बताया कि उच्च गुणवत्ता युक्त रोपण सामग्री द्वारा उत्पादन में 20 से 30% वृद्धि से उच्च गुणवत्ता युक्त उत्पादन लिया जा सकता है ।
वर्तमान समय में किसान पौधो के अंकुरण के लिए प्लग ट्रे का इस्तेमाल कर रहे है जो कि मिट्टी रहित खेती है और इसमें कोकोपीट ,वर्मीकूलाइट , परलाइट आदि का उपयोग किया जाता है जो पौधों को तीव्र गति से पोषक तत्वों की उपलब्धता करवाता है और पौधों में नमी और पोरोसिटी को लंबे समय तक बनाए रखता हैं। डॉ बलराज सिंह ने विभिन्न फसलों के बीज उत्पादन के लिए फील्ड स्टेंडर्ड और सीड स्टेंडर्ड को बताते हुए आइसोलेशन डिस्टेंस, आपत्तिजनक खरपतवार,अवांछीत पौधों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि बीज उत्पादन करते समय स्वयं परागण फसल में दो बार, क्रॉस परागण फसल में तीन बार और हाइब्रिड फसल में दो से चार बार निरीक्षण करना चाहिए। खुले क्षेत्रों की फसल में जैविक व अजैविक तनाव दशा उत्पन्न होती है जिससे बचने के लिए ग्रीन हाउस तकनीकी उपयोगी है । डॉ बलराज सिंह ने बताया कि वर्तमान समय में टिशू कल्चर की तकनीक का इस्तेमाल अनार , केले और पपीता में व्यावसायिक रूप से पौधों के प्रसार और आनुवंशिक सुधार के लिए किया जाता है साथ ही बताया कि नींबू वर्गीय फलों में सबसे ज्यादा फाइटोफ्थोरा कवक जिसका नियंत्रण मेटालैक्सील कवकनाशी से किया जा सकता है और अनार में जीवाणु झुलसा मुख्य चुनौती है जिसका निजात बोर्डो मिश्रण और जीवनुरोधी स्ट्रेप्टोसाइक्लिन से किया जाता है ।
डॉ बलराज सिंह ने बताया कि आलू के बीज उत्पादन के लिए किसानों को सीड प्लॉट तकनीक का उपयोग करना चाहिए जिससे विषाणु मुक्त पादप प्राप्त किए जाते हैं साथ ही बताया कि मोयला के नियंत्रण के लिए दिसंबर महीने में पौधे की काट–छांट करनी चाहिए। इस कार्यक्रम में डॉ संतोष सामोता, डॉ नरेंद्र, डॉ राजेश सिंह, डॉ हीना साहिवाला सहित 194 विद्यार्थियों ने भाग लिया।