जैविक विधि द्वारा पादप रोगों का नियन्त्रण



दुनिया भर के उत्पादकों द्वारा उत्पादित भोजन की गुणवत्ता एवं प्रचुरता को बनाये रखने के लिए पौधों में लगने वाले विभिन्न रोगों का प्रबन्धन आवष्यक है। पौधों की बिमारियों को नियन्त्रित करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करते है। कृषि में ज्यादातर, रासायनिक उर्वरकों एवं फफूदनॉषक/कीटनाषक पर बहुत अधिक भरोसा करते है। कृषि में पिछले कई सालों से फसल की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हॉलाकि, कृषि में उपयोग हो रहे कीटनाषक/फफूदनॉषक का अत्यधिक उपयोग करने से पर्यावरण प्रदुषण के साथ-साथ मृदा में रहने वाले लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या पर भी प्रभाव पड़ा है। प्रबंधन शोधकर्ताओं ने पौध व्याधिक को नियन्त्रित करने के लिए जैविक नियन्त्रण पर ध्यान केन्द्रित किया है। आजकल विभिन्न जैविक विधि पादप रोगों के नियन्त्रण् के लिए उपलब्ध है।

क्या है जैविक खेती :- जैविक खेती, देषी खेती का उन्नत तरीका है। इसमें रासायनिक खाद, कीटनाषकोें, वृद्वि नियन्त्रकों का उपयोग नही करके खेत में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, वर्मीकम्पोस्ट जीवाणु खाद, नीम, जैव नियन्त्रक का उपयोग करके पौध रोगों का नियन्त्रण किया जाता है।

जैवनियन्त्रक द्वारा पादप रोग नियन्त्रण

ट्राइकोडर्मा:- यह मुख्यतः एक जैव कवकनाषी है। यह पादप रोग उत्पन्न करने वाले कारकों जैसे:-फ्यूजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्कलैरोषियम इत्यादि, मृदा जनित रोगजनकों की वृद्वि को रोककर अथवा उन्हें मारकर पौधों में उनसे होने वाले रोगों से सुरक्षा करता है। इसके अलावा ट्राइकोडर्मा सूत्रकृमि से होने वाले रोगों से भी पौधों को बचाते है।
ट्राइकोडर्मा के कार्य करने की प्रणाली-ट्राइाकोडर्मा मुख्यतः: कई प्रकार से रोगकारकों की वृद्वि को रोक देता है।
ऽ ट्राइकोडर्मा एक विषेष प्रकार का प्रतिजैविक रसायनों का संष्लेषण एवं उत्सर्जन करता है जो रोगकारक जीवों के लिए विष का काम करता है।
ऽ यह मृदा में उपस्थिति हानिकारक रोगकारकों पर सीधा आक्रमण करके उसे अपना भोजन बना लेता है।
ऽ ट्राइकोडर्मा के पास विषेष एन्जाइम ;ठए1ए3 ग्लूकानेज), काइटिनेज होता है। जो रोगकारकों के शरीर की उपरी परत को तोड के उनकों मार देता है।

ट्राइकोडर्मा से होने वाले लाभ:-
ऽ यह पौध रोग कारक जीवों की वृद्वि को रोकता है या उन्हें मारकर पोधों को रोग मुक्त करता है।
ऽ यह पौधों की रासायनिक क्रिया को परिवर्तित कर पौधों में रोगरोधी क्षमताओं को बढा देता है। यह मृदा में कार्बनिक अपघटन के दर को बढाता है। अतः यह एक जैव उर्वरक के रूप काम करता है।
ऽ यह पौधों में एंटी आक्सीडेंट गतिविधि को बढाता है। जो फलो में पोषक तत्वों की गुणवत्ता खनिज तत्व की क्षमता को बढाता है।
ऽ यह कीटनाषक/फफूदनाषक से दूषित मिट्टी के जैविक उपचार से बायोरिमिडियेसन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
स्यूडोमोनास फ्लोरसेंस:-यह बैक्टीरिया एक महत्वपूर्ण जैवनियन्त्रक है जो पौधो के विकास को बढावा देने के साथ-साथ रोग जनकों के नियन्त्रण आदि में प्रमुख भूमिका निभाता है। यह मुख्यतः पौध रोगों में होने वाले रोगकारक जैसे:- बैक्टीरिया एवं कवक के आक्रमण को रोकने में लाभदायक साबित हुआ है। स्यूडोमोनास फ्लोरसंेस, पौधों में होने वाले रासायनिक प्रक्रियाओं को परिवर्तित कर रोगों के प्रति रोगप्रतिरोधी क्षमता को बढाता है।

वर्मी कम्पोस्ट / केचुआ खादद्वारा पादप रोग नियन्त्रण:-
वर्मीकम्पोस्ट उत्पाद जैविक उर्वरकों एवं जैविक नियन्त्रक कारक के रूप में कुषल साबित हुआ है। जो मृदा जनित एवं पर्ण पादप रोग कारकों से पौधों को रक्षा प्रदान करता है। मृदा जनित रोगकारक जैसे फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया, स्कलैरोषियमका दमन करता है। यह वातावरण को दूषित किये बिना एवं फसल की गुणवत्ता को बझाते है। जो कि कीटनाषकों/ फफूदनाषकों के उपयोग से वातावरण दूषित होने के साथ-साथ इसके अवषेष मनुष्य एवं जानवरो को हानि पहुचाते है।

जैविक संषोधन/आर्गेनिक अमेन्डमेन्टसद्वारा पादप रोग प्रबन्धन
पौधों के रोगों के प्रबन्धन में भी जैविक संषोधन का सर्वाधिक महत्व है। ष्यह पौधों को विभिन्न तरीकों से लाभाविन्त करता है। सबसे प्रभावी और व्यापक रूप से इस्तेमाल किये जाने वाला नीम केक है जिसके बाद अरडी सरसों, मूंॅगफली इत्यादि जैसे कई अन्य है। यहपरजीवी सूत्रकृमि से होने वाले विभिन्न रोगों से रक्षा करते है। पिछले कुछ दषकों से सूत्रकृमिक के स्थायी प्रबन्धन के लिए कोई भी रणनीति पूरी तरह से लागू नही की जा सकी । लेकिन विभिन्न रासायनिक एवं जैविक तरीकों को एकीकृत करने की आवष्यकता है। जिसमें तेल केक भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

जैव नियन्त्रक राइजोबैक्टीरिया द्वारा मृदा जनित पादप रोगों का नियन्त्रण:-
राइजोबैक्टीरिया एक प्रकार के जीवाणुओं का समूह है जो मुख्यः पौधों के जडों के पास निवास करते है। यह पौधों में वृद्वि के साथ-साथ मृदा जनित रोग कारक जैसे, फ्यूजेरियमएवं वर्टीसिलियमको नष्ट करने में प्रभावषाली साबित हुए है।
राइजोबैक्टीरिया जीवाणु समूह में मुख्,यतः स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स,स्यूडोमोनास प्यूटिडा, बैसीलस, सबटिलिस वं बैसीलस पॉलीमिक्जा आते है।
पीजीपीआर:-यह बैक्टीरिया (जीवाणु) का एक समूह है जो पौधों के राइजोस्फीयर जडों के पास में मौजूद होता है। यह पौधों में विकाष को बढावा देने के साथ-साथ पादप रोगकारकों को भी नियन्त्रित करता है।
राइजोबियम:-जीवाणु राइजोबियम रासायनों की तुलना में वायुमण्डल से नाइट्रोजन को अवषोेषित करने की क्षमता रखते है। यह जीवाणु मृदा या फलियों, जैसे सोयाबीन एवं मूंग जैसी महत्वपूर्ण फलों के साथ या तो मिट्टी में या फायदेंमंद पौधो के साथ स्वतन्त्र रूप से रहते है।राइजोबिया नोडयूल /गांठ बनाने वाले बैक्टीरिया का एक सूूह है जेा मिट्टी एवं फलियों जैसे दलहनी फसलों के जडों के पास उपस्थिति होता है।
राइजोबियम समूह का जीवाणु पौधा रोग नियन्त्रण में वरदान साबित हुआ है। यह पौधों में रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढा कर उनकों हानिकारक रोगकारकों से मुक्त करता है। यह मुख्यतः जड़ प्रणालियों में आक्रमण करने वाले रोगकारक जैसेफ्यूजेरियम सोलेनी, राइजोकटोनिया, मेक्रोफोमिना एवं मेलाइडोगाइनी पौध रोग कारक से रक्षा प्रदान करते है।
यह पौधो की बीमारियों का दमन, राइजोबियम संयत्र विकाष संवर्धन और सहजीवी दक्षता द्वारा करते है। राइजोबिया समूह के जीवाणु जैविक खेती में अहम भूमिका निभाते है।
कार्य करने की प्रणाली :-
राइजोबैक्टीरिया कई प्रकार से पादप रोग कारको को मारता हे जैसे –
सिडेरोफोर:- यह एक प्रकार का लौह अवषोशक पदार्थ है जो राइजोबैक्टिीरया द्वारा अवषोषित होता है,जिससे मृदा मे उपस्थिति अन्य मृदा जनित रोग कारक इसके पदार्थ की कमी होने के कारण मृत्यु हो जाती है।
राइजोबैक्टीरिया जीवाणुुओं का समूह कई तरह के कवक विरोधी पदार्थ उत्पन्न करते है जो विरोधी रोगकारक को नष्ट करने में सहायक होते है।
जैसे:- पायरोनाइट्रिन, पायरोल्यूटियोरिन, बैक्टीरियोसिन्स एवं फीनोलिक्स

जैव उर्वरक का पादप रोग नियन्त्रण मंे भुमिका:-
जैव उर्वरक एक तरह का उर्वरक है जो लाभकारी जीवों जैसे ट्राइकोडर्मा स्यूडोमनोस एवं अन्य जैव नियन्त्रक के साथ मिलाकर बनाया जाता है यह नत्रजन को फिक्स करने के साथ-साथ मृदा जनित रोग कारकों को भी नष्ट करते है।
आजकल बाजार में कई प्रकार के जैव उर्वरक मिलते है जैसे -एजोटोबैक्टर, एजोस्परिलम, राजोबियम एवं माइकोराइजा, जो फसल के वृद्वि के साथ रोगकारक के रोकथाम करने में सहायता प्रदान करते है।
जैव उर्वरक म ुख्यतः अपना समूह पौधों के जड़ों के पास बनाते है। जो मृदा जनित रोग कारक के नियन्त्रण के लिए लाभकारी पाया गया है।
कार्यप्रणाली:-
कवकरोधी पदार्थे का उत्पन्न:-मुुख्यतः लाभकारी जैव उर्वरक जैसे एजोटोबैक्टर नत्रजन को फिक्स करने के साथ -साथ फफूद की वृद्वि को रोकने वाला पदार्थ उत्पन्न करता है। जो विरोधी कवकों को नष्ट करके पादप वृद्वि को बढावा देता है।

  1. पादप अर्क द्वारा रोग नियन्त्रण
    नीम उत्पाद:-मुख्यतः नीम तेल में 40 से अधिक विभिन्न सक्रिय यौगिक होते है जिनमें एजाडिरेक्टिन मुख्य है जो रोगकारकों को मारने के लिए प्रभावी होता है। पौघो में विभिन्न फफूदजनित रोग जैसे, काला धब्बा एन्थ्रेक्नोज, पत्ती घब्बा रोग, स्कैब और अल्टरनेीिरया जैसे रोग कारको केे लिए प्रभावषाली साबित हुआ है।
    नीम तेल के लाभ:-
    ऽ यह प्राकृतिक है जो आसानी से अवक्रमण हो जाता है।
    ऽ यह प्रदूषण के स्तर को कम करके पर्यावरण को स्वस्थ बनाये रखने में अहम भूमिका निभाता है।
    ऽ यह रोगकारकों से होने वाले नुकसान को कम करके उसकी वृद्वि एवं उपज को बढाता है।
    ऽ इसके उपयोग से फसल उत्पादन में किसी प्रकार का हानिकारक अवषेष नही रहता है जो कि कीटनाषकों फफूदनाषकों के उपयोग से रह जाता है। जो मनुष्यों एंव पशुओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
    लहसुन उत्पाद:-लहसुन प्राकृतिक उत्पादों में से एक है जो विगत कई वर्षा से पौधे में होने वाले रोगों की रक्षा करता है। लहसुन में एलिसिन नामक रोगाणु रोधी पदार्थ पाया जाता है जो पौधों रोग कारक से सुरक्षा प्रदान करता है। यह बीजनित रोग जैसे अल्टरनेरिया, मैग्नोपार्थी, फाइटोप्थोरा जैसे रोगकारकों के प्रति प्रभावषाली साबित हुआ है। बीज ओर कंद जैसे रोगपण सामग्री में रोगजनक इनाकुलम क्षमता को कम करने के लिए हम लहसुन कर्क से बीजोउपचार करते है।
  2. माइकोराइजा द्वारा मृदा जनित पादप रोगों का नियन्त्रण:-
    माइकोराइजल कवक पौधों की जड़ों से जुडे रहने के साथ-साथ पोषक तत्वों के अवषोषण क्षमता को बढाते है। माइकोराइजा मुख्यत 90 प्रतिषत से अधिक पौधों की प्रजातियों में पाये जाते है। ये मृदा जनित रोग कारक जैसे फ्यूजेरियम सोलेनी सिलेन्ड्रेक्लैडियम स्पीसीज एवं राइजोक्टोनिया सोलैनी को नष्ट करने में प्रभावकारी पाये गये है।
    कार्यप्रणाली
    ये कई प्रकार से पौधों के जडों को मृदा जनित रोगकारक से बचाते है जैसे:-
  3. कवकरोधी एंटीवायोटिक पदार्थे का उत्पादनकरना और उन्हें नष्ट करना
  4. कवक और पौधों के जडों के बीच में यान्त्रिक बाधा उत्पन्न करना एवं चयापचयों जैसे कवक विरोधी पदार्थो का उत्पादन करना जो फफूंद के वृद्वि दर को रोक देता है।
    मृदा सौरकरण द्वारा मृदा जनित पादप रोगों का प्रबन्धनः‘- यह एक गैर रासायनिक विधि है। जो फसल लगाने से पहले मृदा में होने वाले बीमारियों, कीडों, सूत्रकृमि एवं खरपतवारों को नियंन्त्रित करने के लिए किया जाता है। मृदा सौरकरण प्रक्रिया में स्पष्ट झिल्ली से मिट्टी को ढकते है। जो उज्जवल ऊर्जा को शोषित करता है। जब मिट्टी की नमी पर्याप्त होती है उत्पादित गर्मी मिट्टी को पास्चुरीकरण करती है जो पौधों के विभिन्न रोग जनक कीट, एवं खरपतवारों को नष्ट करती है लेकिन पौधों की वृद्वि को बढावा देने वाले कई लाभदायक मिट्टी में उपस्थिति सूक्ष्मजीवों को भी नुकसान पहुचाते है।मृदा सौरकरण वर्ष की सबसे गर्म समय (मई-जून) के दौरान चार से छः सप्ताह के लिए मृदा सौरकरण प्रक्रिया को अपनाते है जिससे उकठा रोगकरक जैसे फाइटोप्थोरा, जीवाणु कैंकर, वर्टीसिलियम, उकठा जैसे बिमारियों के खिलाफ प्रभावकारी साबित हुआ है। मृदा सौरकरण मुख्यतः मिट्टी में उपस्थिति हानिकारक रोगकारक को नियन्त्रित करने के साथ ही जैविक खेती मंे रोग नियन्त्रण का मुख्य अंग है।

निष्कर्ष:-
ऽ जैविक तरीकों से बीमारियों की रोकथाम अधिक कठिन होता है। अतः रोगों से बचने के लिए शुरू से ही सावधान रहे साथ ही निम्न तरीके अपनाए:-
ऽ गर्मियों मंें गहरी जुताई करें।
ऽ उचित फसल चक्र अपनाए।
ऽ रोगरोधी उन्नत किस्मों की बुवाई करें।
ऽ बीज को तेज धूप मंें सूखाएं या गर्म जल से उपचारित करें।
ऽ बीज को बुवाई करने से पहले मित्र फफूद ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें।

  • दिव्या गुर्जर, श्रीमती पिंकी शर्मा
    पादप व्याधि विभाग, श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि महाविद्यालय जोबनेर,
    (श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय) जोबनेरए जयपुर

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