वर्तमान समय में कुपोषण को दूर करने के लिए सब्जियों में बायोफोर्टिफिकेशन की आवश्यकता – कुलपति डॉ बलराज सिंह


  • लाल शिमला मिर्च में सामान्य मिर्च की अपेक्षा 10 गुना व पीली में 8 गुना ज्यादा पोषक कुलपति डॉ बलराज सिंह
  • विश्वविद्यालय से विकसित मूंगफली की किस्म RG 575–1 में अन्य किस्मों की तुलना 8–10% प्रोटीन की मात्रा अधिक – डॉ बलराज सिंह
  • शिमला मिर्च सबसे ज्यादा रस चूसने वाले कीटो के प्रति संवेदनशील कुलपति डॉ बलराज सिंह

जोबनेर. श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बलराज सिंह ने बुधवार को कृषि स्नातक वर्ष के अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों से संवाद किया, सब्जियों में बायोफोर्टिफिकेशन की वैज्ञानिक पद्धति पर विस्तृत व्याख्यान दिया। डॉ बलराज सिंह ने बताया कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति सब्जियों का सेवन 320–350 ग्राम करना चाहिए जबकि वर्तमान समय में युवाओं में बदलते खानपान, पहनावे और जीवनशैली के कारण विटामिन बी–12 व डी–3 की आमतौर पर कमी पाई जा रही हैं। डॉ बलराज सिंह ने बताया कि बायोफोर्टिफिकेशन एक वैज्ञानिक पद्धति है जिसके द्वारा विटामिन ,खनिज लवण व पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ा दी जाती है। उन्होंने गाजर की बायोफोर्टीफाइड किस्मों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि किस्म पूसा रुधिरा में सबसे ज्यादा बीटा–कैरोटीन की मात्रा होती है तथा पूसा असिता में सबसे ज्यादा एंथोसायनिन की मात्रा होती हैं। डॉ बलराज सिंह ने बताया कि भारत में कर्नल देशवाल ने गाजर उत्पादन के क्षेत्र में काफी कार्य किया है इस कारण भारत में उन्हें गाजर किंग के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि गाजर की किस्म पूसा रुधिरा के बीज विश्वविद्यालय में तैयार किए जा रहे है । गाजर की मुख्य रूप से दो प्रकार की किस्में यूरोपियन व एशियाटिक है इनमें से यूरोपीयन किस्म शीतोष्ण जलवायु की है अतः इनका उत्पादन मैदानी क्षेत्रों में संभव नहीं है, जबकि एशियाटिक का बीज उत्पादन मैदानी क्षेत्रों में भी किया जा सकता है।

डॉ बलराज सिंह ने बायोफोर्टीफाइड पीली व लाल शिमला मिर्च के बारे में बताते हुए कहा कि लाल शिमला मिर्च में सामान्य मिर्च की अपेक्षा 10 गुना व पीली में 8 गुना ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं। डॉ बलराज सिंह ने बताया कि शिमला मिर्च सबसे ज्यादा रस चूसने वाले कीटो के प्रति संवेदनशील हैं साथ ही बेमौसम एवं प्रतिइकाई अधिक उत्पादकता के दृष्टिगत इसको ग्रीनहाउस में उगाया जाता हैं। साथ ही डॉ बलराज सिंह ने विश्वविद्यालय से विकसित की गई तरबूज की बायोफार्टिफाइड किस्म दुर्गापुरा केसर के बारे में बताते हुए कहा कि यह किस्म केसरी रंग के गुदे की है। साथ ही मूली की बायोफार्टिफाइड किस्में– पूसा चेतकी ग्रीष्म ऋतु के लिए और पूसा हिमानी शरद ऋतु के लिए तथा पूसा मृदुला 1 महीने में तैयार हो जाती हैं। डॉ बलराज सिंह ने बताया कि कुफरी उदय आलू की सबसे पहली बायोफार्टिफाइड किस्म हैं। साथ ही बताया कि एरोपोनिक्स तकनीक के द्वारा पोटेटो मिनी ट्यूबर्स तैयार किए जाते हैं जो कि विषाणु मुक्त हैं। डॉ बलराज सिंह ने बताया कि रारी दुर्गापुरा से विकसित मूंगफली की किस्म RG 575–1 में 30% प्रोटीन की मात्रा पाई जाती हैं जो की प्रसंस्करण के लिए सर्वोपरि मानी जाती हैं तथा इसका उपयोग पीनट बटर बनाने में किया जाता हैं, साथ ही बताया कि बाजरे की किस्म RHB–233, RHB–234 जिंक और आयरन से भरपूर है।
इस कार्यक्रम के दौरान रेडी प्रभारी डॉ बी एस बधाला, डॉ संतोष सामोता, डॉ राजेश सिंह, डॉ. हिना सहिवाला, डॉ नरेंद्र सिंह मौजूद रहे साथ ही इन्होने बताया की ऑनलाइन व ऑफलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से विभिन्न कॉलेजों के कई सैकड़ो विद्यार्थियों ने भाग लिया।


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